सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) 2016 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा. जस्टिस आरएफ नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वे ‘संपूर्णता’ में इसकी संवैधानिक वैधता को मान्यता देते हैं. हालांकि कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एक्ट में संबंधित पक्ष से कारोबार से जुड़ा कोई व्यक्ति होना चाहिए. Supreme Court upholds Insolvency and Bankruptcy Code (IBC) in “entirety”. pic.twitter.com/oElKUgD0qy — ANI (@ANI) January 25, 2019 इसी के साथ कोर्ट ने विभिन्न कंपनियों द्वारा आईबीसी के कई प्रावधानों को चुनौती देने वाली तमाम याचिकाओं को खारिज कर दिया. यह कानून दिवालिया कंपनियों के प्रोमोटर्स को बैंकरप्ट हो चुकी कंपनियों को खरीदने से रोकता है. क्या होता है इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्ट्सी कोड न्यूज-18 की खबर के मुताबिक, इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्ट्सी कोड के तहत अगर कोई कंपनी कर्ज नहीं देती है तो उससे कर्ज वसूलने के लिए दो तरीके हैं. एक या तो कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया जाए. इसके लिए एनसीएलटी की विशेष टीम कंपनी से बात करती है. कंपनी के मैनेजमेंट के राजी होने पर कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है और उसकी पूरी संपत्ति पर बैंक का कब्जा हो जाता है. बैंक उस असेट को किसी अन्य कंपनी को बेचकर कर्ज के पैसे वसूलता है. बेशक यह राशि कर्ज की राशि से कम होता है, मगर बैंक का पूरा कर्जा डूबता नहीं है. कर्ज वापसी का दूसरा तरीका है कि मामला एनसीएलटी में ले जाया जाए. कंपनी के मैनेजमेंट से कर्ज वापसी पर बातचीत होती है. 180 दिनों के भीतर कोई समाधान निकालना होता है. कंपनी को उसकी जमीन या संपत्ति बेचकर कर्ज चुकाने का विकल्प दिया जाता है. ऐसा न होने पर कंपनी को ही बेचने का फैसला किया जाता है. खास बात यह है कि जब कंपनी को बेचा जाता है तो उसका प्रमोटर या डायरेक्टर बोली नहीं लगा सकता.
Friday, 25 January 2019

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सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखी दिवालिया कानून की संवैधानिकता, चुनौती देने वाली सभी याचिकाएं खारिज
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