सीबीआई से आलोक वर्मा की विदाई के साथ आधिकारिक तौर पर ‘सफाई’ का काम शुरू हो चुका है. और, यह सिर्फ सतही सजावट भर का मामला नहीं है बल्कि सरकार तकरीबन हिचकोले खाने की हालत में पहुंच चुकी सीबीआई की बुनियाद को मजबूत करने के गंभीर प्रयास कर रही है- सरकार भांप चुकी है कि सीबीआई को पूरी तरह से दुरुस्त करने की जरुरत है. गुरुवार को सीबीआई के जिन चार अधिकारियों के कार्यकाल में कटौती की गई उनमें राकेश अस्थाना और ए के शर्मा का नाम शामिल है. यह पहला संकेत है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाले मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति देश में जांच-पड़ताल की इस शीर्षसंस्था को नए सिरे से दुरुस्त करने के प्रयास कर रही है. सीबीआई में बन गए थे दो धड़े राकेश अस्थाना 1984 बैच के गुजरात कैडर के आईपीएस ऑफिसर हैं. साल 2017 के अक्टूबर में उन्हें सीबीआई का स्पेशल डायरेक्टर बनाया गया. इसके बाद से ही सीबीआई में शीतयुद्ध सरीखा माहौल बनने लगा. तत्कालीन डायरेक्टर आलोक वर्मा ने अस्थाना को स्पेशल डायरेक्टर बनाने के सरकार के फैसले का विरोध किया और अस्थाना के विरोध में पहलकदमी शुरू कर दी. इससे सीबीआई में तनातनी हद से ज्यादा बढ़ गई और आखिरकार आलोक वर्मा ने अपने डिप्युटी के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कराई. पूरे विवाद में सरकार के लिए सबसे बड़ी परेशानी का सबब ये साबित हुआ कि सीबीआई में दो धड़े बन गए और अधिकारी इन दो धड़ों में अपनी पसंद के हिसाब से जाते दिखे. अक्टूबर महीने तक दो खेमों के बीच तलवारें तन चुकी थीं- वर्मा के खेमे और अस्थाना के खेमे के बीच जारी तनातनी से सरकार की किरकिरी हो रही थी. ये भी पढ़ें: आलोक वर्मा को 'संत' साबित करने की कोशिश में देश के अहम पदों और संस्थाओं को पहुंचाया जा रहा है आलोक वर्मा के इशारे पर दर्ज एफआईआर को रद्द कराने के लिए राकेश अस्थाना ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है जबकि गुरूवार को पद से हटाए गए दो अधिकारी ए के शर्मा और एम के सिन्हा आलोक वर्मा के करीबी बताए जाते हैं. जल्द ही सीबीआई के नए डायरेक्टर की नियुक्ति पर लिया जाएगा फैसला सीबीआई जैसी महत्वपूर्ण संस्था में कामकाज का माहौल असंतुलित और अराजक हो उठा है और इसके गंभीर नुकसान हो सकते हैं. मौजूदा घटनाक्रम को बारीकी से देखने वाले अधिकारियों के मुताबिक सरकार इस संस्था के कामकाज में संतुलन बैठाने के प्रयास कर रही है. जल्दी ही प्रधानमंत्री की अगुआई में समिति की बैठक होने वाली है जिसमें सीबीआई के नए डायरेक्टर को नियुक्त करने का फैसला लिया जाएगा. नए निर्देश के जरिए सीबीआई से बाहर किए गए एके शर्मा 1987 बैच के गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं. उन्हें आलोक वर्मा का घनिष्ठ विश्वासपात्र माना जाता था. दिलचस्प बात यह है कि आलोक वर्मा के सीबीआई का कार्यभार संभालने के एक महीने बाद ही एके शर्मा को एक अहम पद मिल गया. उन्हें सीबीआई में संयुक्त निदेशक (नीति) बनाया गया था. राकेश अस्थाना ने केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को लिखी अपनी चिट्ठी में एके शर्मा पर गंभीर आरोप लगाए थे. अस्थाना का आरोप है कि एके शर्मा के परिवार के लोग शेल कंपनियां चला रहे हैं और जिन लोगों के साथ मिलकर यह काम किया जा रहा है, उनके नाम सीबीआई की सूची में संपर्क के लिहाज से अवांछित करार दिए गए लोगों में शामिल हैं. अक्टूबर में बड़े पैमाने पर फेरबदल हुई थी और एके शर्मा को एमडीएमए यूनिट में भेज दिया गया था. सूत्रों के मुताबिक, सरकार शर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच का मन बना चुकी है. इसमें संदेह के घेरे में आई कई कंपनियों की भी जांच शामिल है. ये भी पढ़ें: नए CBI चीफ की नियुक्ति के लिए 24 जनवरी को होगी सेलेक्शन पैनल की बैठक एक विश्वसनीय सूत्र ने फ़र्स्टपोस्ट से कहा कि 'उनके परिवार और रिश्तेदारों ने कथित तौर पर चलाई जाने वाली लगभग 8 कंपनियों का ब्यौरा सीवीसी और कैबिनेट सचिवालय के पास है. मामले की तह तक पहुंचने के लिए इन आरोपों की जांच की जाएगी.' सीबीआई के डीआईजी ने भी लगाए थे गंभीर आरोप प्रधानमंत्री की अगुआई वाली समिति ने सीबीआई के एक और अधिकारी एम के सिन्हा के कार्यकाल में कटौती की है. सिन्हा आंध्र प्रदेश कैडर के 2000 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं. आलोक वर्मा के करीबी के रूप में देखे जाने वाले सिन्हा एंटी करप्शन यूनिट (भ्रष्टाचार-निरोधी इकाई) के डीआईजी थे. यह यूनिट सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के खिलाफ लगे आरोपों की जांच कर रही थी. अक्टूबर में आधी रात को हुई कार्रवाई में एम के सिन्हा का तबादला नागपुर कर दिया गया था. इसके बाद, एम के सिन्हा ने एक केंद्रीय मंत्री और सरकार के कुछ अन्य शीर्ष अधिकारियों के खिलाफ आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उन्होंने यह आरोप भी लगाया था कि सीबीआई का नियंत्रण कुछ ताकतवर व्यक्तियों ने अपने हाथ में ले लिया है और ये ताकतवर व्यक्ति कुछ लोगों को हटाने और कुछ लोगों को फंसाने के अपने निजी स्वार्थ साधने में लगे हैं भले ही मामले में तथ्य कुछ भी हों. एम के सिन्हा की अर्जी को कीचड़ उछालने की एक तरकीब के रूप में देखा गया. सरकार उस वक्त सुप्रीम कोर्ट में वर्मा को हटाने के मामले में मुकदमा लड़ रही थी और अर्जी से उसे परेशानी हुई. ये भी पढ़ें: CBI डायरेक्टर की तलाश: किसको मिलेगी अहमियत, अनुभव की चलेगी या फिर पसंद-नापसंद के बीच सीबीआई में चले रहे संघर्ष ने सरकार की नजरों में इसे डांवाडोल संस्था बना दिया था, संस्था के भीतर पूरी व्यवस्था को नए सिरे से बहाल करने की जरूरत थी. आलोक वर्मा की अब विदाई हो चुकी है और नए निदेशक को चुनने की प्रक्रिया के शुरू होने के साथ सीबीआई में कामकाज फिर से पटरी पर लौटता दिख रहा है. सरकार ने सीबीआई के वरिष्ठ अधिकारियों के कार्यकाल में कटौती करके साफ संदेश दिया है कि संस्था के भीतर चल रही गुटबाजी को रोकने और व्यवस्था कायम करने के लिए वह हर जरूरी कदम उठाने को तैयार है.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Sports
Popular Posts
-
About a week from now, the results of the Uttar Pradesh elections, touted as the “semi-final” before the 2024 Lok Sabha elections, will be k...
-
It almost sounds like a television show, but, in fact, it’s reality. As Jharkhand chief minister Hemant Soren prepares to appear before the...
-
The Assam government has issued a travel advisory asking people to avoid travelling to Mizoram. It has also asked those from the state worki...
No comments:
Post a Comment