आईसीसी ने सन 2018 के लिए सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों की टीम में विराट कोहली को टेस्ट और वनडे मैचों के लिए कप्तान घोषित किया है. इस पर कोई विवाद नहीं हो सकता कि कोहली इस सम्मान के पूरे-पूरे हकदार हैं. कप्तान से दो बातों की उम्मीद की जाती है, पहली वह नेतृत्व की कसौटी पर खरा उतरेगा और दूसरे उसका व्यक्तिगत प्रदर्शन ऐसा होगा कि वह टीम के दूसरे खिलाड़ियों के लिए मिसाल बन सके. अक्सर सफल कप्तान वे होते हैं जो इन दोनों में से किसी एक कसौटी पर बड़ी हद तक खरे उतरते हैं और दूसरी कसौटी पर कुछ हद तक कामयाब होते हैं. कोहली एक ऐसे कप्तान हैं जो दोनों कसौटियों पर बड़ी हद तक खरे उतरते हैं. लेकिन ऐसे कप्तान कम ही होते हैं. फ्रैंक वॉरेल, क्लाइव लॉयड और स्टीव वॉ जैसे कुछ नाम इस सिलसिले में याद आते हैं. कोहली की अगर कोई कमजोरी है तो वह थोड़ी बहुत रणनीति के मामले में है, लेकिन सर्वगुण संपन्न कोई नहीं हो सकता. बतौर कप्तान कोहली जिस स्तर तक पहुंचते हैं, वहां तक कम ही लोग पहुंच पाते हैं. कोहली वरिष्ठ खिलाड़ी को देते हैं पूरा सम्मान कोहली की कप्तानी का एक गुण महेंद्र सिंह धोनी की टीम में स्थिति के सिलसिले में देखने को मिलता है. यह बहुत दुर्लभ गुण है जिसका अलग से उल्लेख किया जाना जरूरी है. अपने से ज्यादा वरिष्ठ खिलाड़ी को टीम में सम्मान रखने की उदारता और समझदारी बहुत कम कप्तान दिखा पाते हैं. इसके लिए बड़े आत्मविश्वास और विनम्रता की जरूरत होती है. ज्यादातर कप्तान वरिष्ठ खिलाड़ियों को मार्गदर्शक मंडल में ही देखना पसंद करते हैं. वे अपने से वरिष्ठ सदस्यों की मौजूदगी में असहज महसूस करते हैं और यही चाहते हैं कि उनकी टीम के सारे सदस्य उनसे जूनियर ही हों तो अच्छा. खुद धोनी जब कप्तान थे तब उनसे ज्यादा वरिष्ठ कई खिलाड़ी टीम में थे और धोनी की उनकी वजह से असहजता साफ़ दिखती थी. कोहली की टीम में बहुमूल्य साबित हुए हैं धोनी इसमें कोई शक नहीं कि धोनी भी कोहली की टीम में बहुमूल्य साबित हुए हैं और फिलहाल जैसा वह खेल रहे हैं, उसके चलते यह उम्मीद की जा सकती है कि अगले विश्व कप में वे टीम के लिए बहुत उपयोगी होंगे. भारतीय टीम की अपेक्षाकृत कमजोर कड़ी मध्यक्रम की बल्लेबाजी है और यहां धोनी बड़े काम के साबित हो रहे हैं. कोहली और टीम प्रबंधन की इस बात के लिए तारीफ करनी होगी कि जब धोनी बतौर बल्लेबाज बहुत कामयाब नहीं हो रहे थे तब भी उन्होंने धोनी पर यकीन बनाए रखा. कोहली की इस बात के लिए भी तारीफ़ करनी होगी कि वे धोनी से सलाह करते रहते हैं. जब धोनी विकेट के पीछे से गेंदबाज को कुछ हिदायत देते हैं या फ़ील्डिंग में तब्दीली करवाते हैं तो कोहली उसे खुशी खुशी स्वीकार करते हैं. अपेक्षाकृत कमजोर कप्तान इसमें अपना अपमान मान सकता है या असुरक्षित महसूस कर सकता है. रिटायर करवा दिया जाने पर जोर नहीं देते किसी भी कप्तान को यह मोह हो सकता है कि जब ऋषभ पंत जैसा युवा विकल्प मौजूद है तो धोनी को रिटायर करवा दिया जाए. यह अक्सर टीमों में या कप्तानों में यह देखने में आता है कि एक खास उम्र हो जाने पर वे सोचते हैं कि अब खिलाड़ी को रिटायर कर देना चाहिए. जाहिर है कि सचमुच रिटायर होने की स्थिति हो जाने पर भी रिटायर न होने वाले खिलाड़ियों को जबर्दस्ती रिटायर करना पड़ता है. लेकिन अक्सर ऐसे खिलाड़ियों को रिटायर कर दिया जाता है जिनका कोई बेहतर विकल्प भी नहीं होता. जैसे शेन वॉर्न को जब ऑस्ट्रेलिया ने रिटायर कर दिया तो वह कम से कम दो साल और खेलने के काबिल थे और तब उनसे बेहतर कोई स्पिनर ऑस्ट्रेलिया में नहीं था बल्कि अब तक नहीं है. शेन वॉर्न की कमी से ऑस्ट्रेलियाई टीम कमजोर हुई यह साफ है. इसी तरह एडम गिलक्रिस्ट के रिटायरमेंट पर भी सवाल उठाया जा सकता है. हो सकता है कि गिलक्रिस्ट का खेल उतना अच्छा नहीं रहा था, लेकिन कुछ कम प्रभावी गिलक्रिस्ट भी उस वक्त ऑस्ट्रेलिया के सर्वश्रेष्ठ विकेटकीपर बल्लेबाज थे. कोहली से सबक लेना चाहिए था मुंबई को जाफर के मामले में भारत के घरेलू क्रिकेट में इसका उदाहरण वसीम जाफर हैं. वसीम जाफर को कुछ साल पहले मुंबई की टीम ने दूध में से मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया. यह सच है कि जाफ़र की उम्र हो गई थी और उनकी फिटनेस भी संदेहास्पद थी लेकिन रणजी ट्रॉफी में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी के प्रति मुंबई क्रिकेट ज्यादा सम्मान और संवेदनशीलता दिखा सकता था. जाफर अगर अपनी क्षमता का 60-70 प्रतिशत भी प्रदर्शन करते तो शायद वे बहुत उपयोगी हो जाते. जाफर ने अपनी फिटनेस पर काम किया और आज चालीस की उम्र में वह लगातार शतक जमा रहे हैं. विदर्भ ने पिछले साल रणजी ट्रॉफी जीती थी और इस साल फाइनल में पहुंच चुकी है, इसमें वसीम जाफर की भव्य बल्लेबाजी का बहुत बड़ा योगदान है. मुंबई की बल्लेबाजी इस सीजन में नहीं चली और वह नॉक आउट स्टेज तक नहीं पहुंच पाई. अगर जाफर मुंबई से खेल रहे होते तो मुंबई की स्थिति कुछ और ही होती. लेकिन हर कोई विराट कोहली नहीं होता जो वरिष्ठ खिलाड़ियों के अनुभव और योग्यता से फायदा उठाने की काबिलियत रखता हो.
Sunday, 3 February 2019
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संडे स्पेशल : कप्तानी में फ्रैंक वॉरेल, क्लाइव लॉयड और स्टीव वॉ की परंपरा को आगे बढ़ाते विराट कोहली
संडे स्पेशल : कप्तानी में फ्रैंक वॉरेल, क्लाइव लॉयड और स्टीव वॉ की परंपरा को आगे बढ़ाते विराट कोहली
आईसीसी ने सन 2018 के लिए सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों की टीम में विराट कोहली को टेस्ट और वनडे मैचों के लिए कप्तान घोषित किया है. इस पर कोई विवाद नहीं हो सकता कि कोहली इस सम्मान के पूरे-पूरे हकदार हैं. कप्तान से दो बातों की उम्मीद की जाती है, पहली वह नेतृत्व की कसौटी पर खरा उतरेगा और दूसरे उसका व्यक्तिगत प्रदर्शन ऐसा होगा कि वह टीम के दूसरे खिलाड़ियों के लिए मिसाल बन सके. अक्सर सफल कप्तान वे होते हैं जो इन दोनों में से किसी एक कसौटी पर बड़ी हद तक खरे उतरते हैं और दूसरी कसौटी पर कुछ हद तक कामयाब होते हैं. कोहली एक ऐसे कप्तान हैं जो दोनों कसौटियों पर बड़ी हद तक खरे उतरते हैं. लेकिन ऐसे कप्तान कम ही होते हैं. फ्रैंक वॉरेल, क्लाइव लॉयड और स्टीव वॉ जैसे कुछ नाम इस सिलसिले में याद आते हैं. कोहली की अगर कोई कमजोरी है तो वह थोड़ी बहुत रणनीति के मामले में है, लेकिन सर्वगुण संपन्न कोई नहीं हो सकता. बतौर कप्तान कोहली जिस स्तर तक पहुंचते हैं, वहां तक कम ही लोग पहुंच पाते हैं. कोहली वरिष्ठ खिलाड़ी को देते हैं पूरा सम्मान कोहली की कप्तानी का एक गुण महेंद्र सिंह धोनी की टीम में स्थिति के सिलसिले में देखने को मिलता है. यह बहुत दुर्लभ गुण है जिसका अलग से उल्लेख किया जाना जरूरी है. अपने से ज्यादा वरिष्ठ खिलाड़ी को टीम में सम्मान रखने की उदारता और समझदारी बहुत कम कप्तान दिखा पाते हैं. इसके लिए बड़े आत्मविश्वास और विनम्रता की जरूरत होती है. ज्यादातर कप्तान वरिष्ठ खिलाड़ियों को मार्गदर्शक मंडल में ही देखना पसंद करते हैं. वे अपने से वरिष्ठ सदस्यों की मौजूदगी में असहज महसूस करते हैं और यही चाहते हैं कि उनकी टीम के सारे सदस्य उनसे जूनियर ही हों तो अच्छा. खुद धोनी जब कप्तान थे तब उनसे ज्यादा वरिष्ठ कई खिलाड़ी टीम में थे और धोनी की उनकी वजह से असहजता साफ़ दिखती थी. कोहली की टीम में बहुमूल्य साबित हुए हैं धोनी इसमें कोई शक नहीं कि धोनी भी कोहली की टीम में बहुमूल्य साबित हुए हैं और फिलहाल जैसा वह खेल रहे हैं, उसके चलते यह उम्मीद की जा सकती है कि अगले विश्व कप में वे टीम के लिए बहुत उपयोगी होंगे. भारतीय टीम की अपेक्षाकृत कमजोर कड़ी मध्यक्रम की बल्लेबाजी है और यहां धोनी बड़े काम के साबित हो रहे हैं. कोहली और टीम प्रबंधन की इस बात के लिए तारीफ करनी होगी कि जब धोनी बतौर बल्लेबाज बहुत कामयाब नहीं हो रहे थे तब भी उन्होंने धोनी पर यकीन बनाए रखा. कोहली की इस बात के लिए भी तारीफ़ करनी होगी कि वे धोनी से सलाह करते रहते हैं. जब धोनी विकेट के पीछे से गेंदबाज को कुछ हिदायत देते हैं या फ़ील्डिंग में तब्दीली करवाते हैं तो कोहली उसे खुशी खुशी स्वीकार करते हैं. अपेक्षाकृत कमजोर कप्तान इसमें अपना अपमान मान सकता है या असुरक्षित महसूस कर सकता है. रिटायर करवा दिया जाने पर जोर नहीं देते किसी भी कप्तान को यह मोह हो सकता है कि जब ऋषभ पंत जैसा युवा विकल्प मौजूद है तो धोनी को रिटायर करवा दिया जाए. यह अक्सर टीमों में या कप्तानों में यह देखने में आता है कि एक खास उम्र हो जाने पर वे सोचते हैं कि अब खिलाड़ी को रिटायर कर देना चाहिए. जाहिर है कि सचमुच रिटायर होने की स्थिति हो जाने पर भी रिटायर न होने वाले खिलाड़ियों को जबर्दस्ती रिटायर करना पड़ता है. लेकिन अक्सर ऐसे खिलाड़ियों को रिटायर कर दिया जाता है जिनका कोई बेहतर विकल्प भी नहीं होता. जैसे शेन वॉर्न को जब ऑस्ट्रेलिया ने रिटायर कर दिया तो वह कम से कम दो साल और खेलने के काबिल थे और तब उनसे बेहतर कोई स्पिनर ऑस्ट्रेलिया में नहीं था बल्कि अब तक नहीं है. शेन वॉर्न की कमी से ऑस्ट्रेलियाई टीम कमजोर हुई यह साफ है. इसी तरह एडम गिलक्रिस्ट के रिटायरमेंट पर भी सवाल उठाया जा सकता है. हो सकता है कि गिलक्रिस्ट का खेल उतना अच्छा नहीं रहा था, लेकिन कुछ कम प्रभावी गिलक्रिस्ट भी उस वक्त ऑस्ट्रेलिया के सर्वश्रेष्ठ विकेटकीपर बल्लेबाज थे. कोहली से सबक लेना चाहिए था मुंबई को जाफर के मामले में भारत के घरेलू क्रिकेट में इसका उदाहरण वसीम जाफर हैं. वसीम जाफर को कुछ साल पहले मुंबई की टीम ने दूध में से मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया. यह सच है कि जाफ़र की उम्र हो गई थी और उनकी फिटनेस भी संदेहास्पद थी लेकिन रणजी ट्रॉफी में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी के प्रति मुंबई क्रिकेट ज्यादा सम्मान और संवेदनशीलता दिखा सकता था. जाफर अगर अपनी क्षमता का 60-70 प्रतिशत भी प्रदर्शन करते तो शायद वे बहुत उपयोगी हो जाते. जाफर ने अपनी फिटनेस पर काम किया और आज चालीस की उम्र में वह लगातार शतक जमा रहे हैं. विदर्भ ने पिछले साल रणजी ट्रॉफी जीती थी और इस साल फाइनल में पहुंच चुकी है, इसमें वसीम जाफर की भव्य बल्लेबाजी का बहुत बड़ा योगदान है. मुंबई की बल्लेबाजी इस सीजन में नहीं चली और वह नॉक आउट स्टेज तक नहीं पहुंच पाई. अगर जाफर मुंबई से खेल रहे होते तो मुंबई की स्थिति कुछ और ही होती. लेकिन हर कोई विराट कोहली नहीं होता जो वरिष्ठ खिलाड़ियों के अनुभव और योग्यता से फायदा उठाने की काबिलियत रखता हो.
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