चूड़ियों के शहर फिरोज़ाबाद में चूड़ियों की खनक की जगह कुनबे की कलह से उठने वाला सियासी कोहराम गूंज सकता है. सीट की दावेदारी को लेकर चाचा-भतीजे आमने-सामने हो सकते हैं क्योंकि चाचा शिवपाल सिंह यादव ने फिरोज़ाबाद की संसदीय सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. इस सीट से समाजवादी पार्टी की तरफ से रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव सांसद हैं. साफ है कि परिवार की निजी लड़ाई फिरोजाबाद सीट से शुरू हो कर यूपी की बाकी सीटों पर भी देखने को मिलेगी. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि शिवपाल के ऐलान के बाद क्या समाजवादी पार्टी दोबारा अक्षय यादव को फिरोजाबाद से उतारना चाहेगी? मात्र 27 साल की उम्र में अक्षय यादव फिरोजाबाद से मोदी-लहर के बावजूद चुनाव जीते थे. यूपी से सबसे कम उम्र के सांसद भी वो बने. लेकिन अब अपने ही चचेरे भाई राम गोपाल यादव के बेटे के राजनीतिक करियर पर शिवपाल यादव ग्रहण लगाना चाहते हैं तभी उन्होंने फिरोजाबाद से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. सही मायने में राम गोपाल यादव से शिवपाल यादव पुराना हिसाब बराबर करना चाहते हैं. दरअसल, जब समाजवादी पार्टी के आधिपत्य की जंग छिड़ी तो अखिलेश के साथ राम गोपाल कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे. राम गोपाल यादव को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोपों के चलते तत्कालीन अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित भी कर दिया था. ये भी आरोप लगे कि यादव परिवार की महाभारत के पीछे असली दिमाग रामगोपाल यादव का था. राम गोपाल यादव की ही वजह से शिवपाल आखिरी तक संघर्ष के बावजूद ‘साइकिल’ की चाबी नहीं पा सके. अब जब नई पार्टी बनी तब जाकर उन्हें चुनाव आयोग से ‘चाबी’ तो मिली लेकिन चुनाव चिन्ह के रूप में. लेकिन एक वक्त वो भी था जब ‘साइकिल’ के दो पहिए मुलायम सिंह और शिवपाल यादव ही माने जाते थे. शिवपाल का कद पार्टी में मुलायम सिंह की ऊंचाई की वजह से छोटा नहीं था जिसे बाद में कतरने में राम गोपाल ने चाणक्य की भूमिका निभाई. अखिलेश से बढ़े विवाद के बाद जब शिवपाल अकेले पड़ गए तो अपने सियासी वजूद को बचाने के लिए दूसरी पार्टी बना डाली. नई पार्टी को भी उन्होंने मुलायम सिंह यादव को ही समर्पित किया. हालांकि मुलायम कभी भी शिवपाल के समर्थन में खुलकर सामने नहीं आए. भाई के साथ स्नेह पर पुत्र-प्रेम हावी रहा. शिवपाल के सियासी मंच पर मुलायम सिंह समाजवादी पार्टी को जिताने की अपील कर गए. नई पार्टी बनाने के बाद शिवपाल आक्रमक कम और भावुक ज्यादा दिखे. उन्होंने सफाई देते हुए बार-बार कहा कि पार्टी में सम्मान न मिलने और उपेक्षा होने की वजह से ही उन्हें प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) बनानी पड़ी. शिवपाल पूछ रहे हैं कि मुलायम ने मायावती को बहन नहीं बनाया तो वो अखिलेश की बुआ कैसे हो गईं? शिवपाल ने ये भी कहा कि मुलायम सिंह को 'गुंडा' और समाजवादी पार्टी को 'गुंडों की पार्टी' कहने वाली मायावती के साथ अखिलेश का गठबंधन पिता और चाचा का अपमान है. जाहिर तौर पर अखिलेश यादव से ये सारे सियासी सवाल शिवपाल यादव परिवार के पांच संसदीय क्षेत्रों में चुनाव प्रचार के वक्त भी पूछेंगे. शिवपाल ने पहले अखिलेश पर निशाना साधा था कि जो बाप का नहीं वो किसी का क्या होगा तो अब वो इसी डायलॉग के जरिए एसपी-बीएसपी गठबंधन पर भी सवाल उठाएंगे. साल 2019 का लोकसभा चुनाव दरअसल न सिर्फ देश की सियासत बल्कि देशभर की पार्टियों और नेताओं के लिए निर्णायक होने जा रहा है. इस चुनाव के नतीजे बहुत लोगों का भविष्य तय करेंगे. इस चुनाव को देश का अबतक का सबसे बड़ा सियासी चुनाव माना जा सकता है. इस चुनाव में बहुत सारे नेताओं का भविष्य दांव पर है. यूपी में बीजेपी और कांग्रेस की ही तरह मायावती, अखिलेश और शिवपाल के सियासी मुस्तकबिल का फैसला होना है. फैसला ये होना है कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव के 5 साल बाद क्या यूपी की जनता को मायावती की पार्टी कुबूल है तो फैसला ये होना है कि विधानसभा चुनाव में सत्ता से हटाए जाने के बाद क्या लोकसभा चुनाव में यूपी की जनता को 'साइकिल' की सवारी पसंद है? फैसला ये भी होना है कि यूपी के जातीय समीकरण खासतौर से मुस्लिम-यादव समीकरण को क्या शिवपाल की नई पार्टी में अपनी 'प्रगति' दिखाई देती है? बड़ा सवाल ये है कि क्या शिवपाल के सियासी बदले का पहला शिकार फिरोजाबाद से अक्षय यादव होंगे? अगर इस बार लोकसभा चुनाव में अक्षय यादव दोबारा फिरोजाबाद से चुनाव लड़ते हैं तो लड़ाई कांटे की होगी क्योंकि दांव पर एक तरफ शिवपाल का सियासी वजूद होगा तो दूसरी तरफ अखिलेश यादव की साख होगी.साल 2009 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश फिरोजबाद से चुनाव जीते थे. लेकिन बाद में उन्होंने फिरोजाबाद की सीट अपनी पत्नी के लिए छोड़ दी थी. साल 2009 के उपचुनाव में अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव यहां से चुनाव हार गई थीं और राज बब्बर यहां से चुनाव जीते थे. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में अक्षय यादव ने जीतकर समाजवादी पार्टी को सीट लौटाई. फिरोजाबाद के बाद सवाल कन्नौज पर भी उठेंगे. अखिलेश यादव ने कन्नौज से चुनाव लड़ने का पहले ही ऐलान कर चुके हैं. ऐसे में क्या शिवपाल दूसरी सीट के विकल्प के तौर पर कन्नौज से ताल ठोंकेंगे?
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