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Tuesday 12 June 2018

ट्रंप-कार्ड ने बदल डाला उत्तर कोरिया के साथ अमेरिकी रिश्तों का इतिहास 


अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के सर्वोच्च नेता किम जोंग ने ये साबित कर दिया कि वो इतिहास में लिपटी हुई शर्तों, शिकायतों, अतीत के दुराग्रहों और संघर्षों को भुला कर नया इतिहास रचने के लिये ही सत्ता में आए थे. ट्रंप को जो अमेरिकी सत्ता मिली उसमें अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपतियों की वो चेतावनी शामिल थी जिसमें उत्तर कोरिया को 'शैतान की धुरी' बताया गया था. दुनिया के नक्शे पर छोटा सा देश अमेरिका के लिये सबसे बड़ा खतरा बताया गया था.
किम के साथ बैठक के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि हम एक नए इतिहास के लिए तैयार हैं. हम इतिहास का नया अध्याय लिखेंगे
किम के साथ बैठक के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि हम एक नए इतिहास के लिए तैयार हैं. हम इतिहास का नया अध्याय लिखेंगे
कुछ ऐसी ही सोच किम जोंग को भी अपने पिता और दादा से विरासत में मिली थी. किम जोंग ने अपने दादा और पिता के भीतर अमेरिका के खिलाफ नफरत और युद्ध का उन्माद देखा था. उनकी सोच में भी अमेरिका से बदला लेने की आग सुलगती थी. किम जोंग के सत्ता में आने के बाद किये गए एक के बाद एक परमाणु परीक्षण और आईसीबीएम मिसाइलों के टेस्ट से साफ हो गया था कि किम जोंग अमेरिका के साथ निर्णायक जंग की तैयारी में जुट चुके थे.
दोनों ही देशों के बीच तकरीबन 65 साल से शांति या फिर किसी समझौते की पहल नहीं हुई बल्कि एक दूसरे को मिटा देने की धमकियां ही सुनाई देती रहीं. उत्तर कोरिया पर संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका के प्रतिबंध बढ़ते जा रहे थे तो दूसरी तरफ वो लगातार खुद की सुरक्षा की आड़ में घातक हथियारों का जखीरा बढ़ाता जा रहा था.
bush
नतीजतन अमेरिकी राष्ट्रपतियों के लिए उत्तर कोरिया वो घाव बन चुका था जिसे कोई भी राष्ट्रपति अपने शासनकाल में भर नहीं सका बल्कि उसने बढ़ाने का ही काम किया. ओबामा प्रशासन के वक्त उत्तर कोरिया पर प्रतिबंधों की भरमार हो चुकी थी और रही सही कसर ट्रंप प्रशासन ने पूरी कर दी.
लेकिन इन सबके बावजूद ट्रंप ने अपनी विदेश नीति में उत्तर कोरिया को ट्रंप कार्ड की तरह इस्तेमाल किया और फिर जो सिंगापुर में सामने आया वो दुनिया का सबसे बड़ा अचंभा निकला. कहां तो दुनिया दो दुश्मन देशों की जिद और जुनून के चलते परमाणु हमले की दहशत में जीने को मजबूर थी और कहां हालात कुछ यूं बदले, बात कुछ यूं बनी कि सिंगापुर में पहले हाथ मिले और फिर दिल भी मिल गए.
मंगलवार सुबह नॉर्थ कोरिया के लीडर और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच सिंगापुर के कैपेला होटल में ऐतिहासिक मुलाकात हुई
मंगलवार सुबह नॉर्थ कोरिया के लीडर और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच सिंगापुर के कैपेला होटल में ऐतिहासिक मुलाकात हुई
कल तक उत्तर कोरिया के तानाशाह को रॉकेटमैन और पागल तक कहने वाले ट्रंप आज भरी महफिल में किम को प्रतिभाशाली बता रहे हैं. वो किम की तारीफों के पुल बांध रहे हैं. वो बातचीत को ऐतिहासिक रूप से कामयाब बता रहे हैं.
तो  कुछ महीनों पहले तक अमेरिकी राष्ट्रपति को सनकी और बुड्ढा कहने वाले किम जोंग मुलाकात को बेहद सफल बता रहे हैं. हालांकि उनकी मुस्कुराहट में कई सवाल अभी भी बाकी हैं. उनसे जब पूछा गया कि 'क्या वो एटॉमिक साइट को बंद कर देंगे?' तो जवाब में वो सिर्फ मुस्कुराते रहे.
हालांकि ट्रंप ने ये साफ किया कि परमाणु निरस्त्रीकरण एक लंबी प्रक्रिया है. जाहिर तौर पर उस लंबी प्रक्रिया से पहले राजी होना ही अपने आप में मील का पत्थर है.
G-7 Summit
जब जी-7 देशों की बैठक से नाराज होकर ट्रंप सिंगापुर के लिए चले थे तो साथ में आशंकाओं के बादल भी थे. कई सवाल थे कि जिस 'महामुलाकात' को लेकर इतने कयास और इतने क्लाइमेक्स आए हों तो क्या वो वाकई सार्थक और साकार हो सकेगी. शायद यही सवाल उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग के भी दिमाग में था. तभी उस महामुलाकात के बाद उन्होंने कहा कि ‘मुझे लगता है कि पूरी दुनिया इस पल को देख रही है… दुनिया के कई लोग इसे सपना समझ रहे होंगे या फिर किसी साइंस फिक्शन फिल्म का सीन.’
वाकई ये किसी साइंस फिक्शन फिल्म की हैप्पी-एंडिंग से कम नहीं है और कोरियाई प्रायद्वीप के लोगों के लिये सपने से कम भी नहीं. इस मुलाकात की अहमियत को इसी बात से समझा जा सकता है कि दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ने बताया कि वो मुलाकात से पहले की रात सो नहीं सके. नींद सिर्फ दक्षिण कोरिया की ही नहीं उड़ी थी. बल्कि जापान और चीन की भी नींद उड़ी हुई थी. दुनिया के तमाम देशों की तरह इनकी भी सांसें अटकी हुई थीं.
नॉर्थ कोरिया का तानाशाह लीडर किम जोंग उन
नॉर्थ कोरिया का तानाशाह लीडर किम जोंग उन
दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक मुलाकात की कामयाबी का गवाह वो दस्तखत बने हैं जो दोनों राष्ट्राध्यक्षों ने न सिर्फ अपने मुल्कों बल्कि दुनिया में शांति के लिये दर्ज कराए. इस समझौते के मुताबिक उत्तर कोरिया परमाणु निस्त्रीकरण के लिये पूरी तरह से राजी हो गया है.
उत्तर कोरिया के आसमान पर हुंकार भरने वाले अमेरिकी फाइटर जेट अब उत्तर कोरिया की सुरक्षा की गारंटी लेंगे. कल तक उत्तर कोरिया को परमाणु हमले से तबाह करने की धमकी देने वाला अमेरिका अब उत्तर कोरिया की हिफाजत का जिम्मा ले रहा है.
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा है कि किम जोंग से उनकी मुलाकातों का सिलसिला जारी रहेगा और वो किम को व्हाइट हाउस आने का भी न्योता देंगे. तो किम अब दुनिया को ये आश्वस्त करना चाहते हैं कि दुनिया बदलाव देखेगी. अमेरिकी शहरों को परमाणु मिसाइलों से खाक में मिला देने की धमकी देने वाले किम जोंग अब परमाणु निरस्त्रीकरण के लिये तैयार हो गए हैं. जिस अमेरिका से हमले की डर की वजह से उत्तर कोरिया ने खुद को परमाणु संपन्न राष्ट्र बनाया था आज उसी अमेरिका के आग्रह पर किम जोंग परमाणु हथियारों को नष्ट करने के लिये राजी हो गए हैं.
दुनिया के किसी भी हिस्से में मिसाइल गिराने की ताकत और तकनीक रखने वाले अमेरिका के लिये नॉर्थ कोरिया अब बड़ा सिरदर्द बन चुका है. उसकी मिसाइलों की रेंज और परमाणु हथियार ले जाने की क्षमता की वजह से ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नॉर्थ कोरिया को अमेरिका के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया था
दुनिया के किसी भी हिस्से में मिसाइल गिराने की ताकत और तकनीक रखने वाले अमेरिका के लिये नॉर्थ कोरिया अब बड़ा सिरदर्द बन चुका है. उसकी मिसाइलों की रेंज और परमाणु हथियार ले जाने की क्षमता की वजह से ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नॉर्थ कोरिया को अमेरिका के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया था
खास बात ये है कि अब अमेरिका ही उत्तर कोरिया की सुरक्षा देखेगा. ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि फिर चीन की भूमिका क्या होगी? दरअसल इस महाबैठक के लिए किम जोंग को तैयार करने में पर्दे के पीछे चीन की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. इस मुलाकात की कामयाबी के पीछे चीन एक बड़ा किरदार है और उसकी भूमिका को अमेरिका भी भीतर ही भीतर समझ चुका है. चीन ने पहले उत्तर कोरिया को एक ताकतवर परमाणु राष्ट्र बना कर स्थापित किया तो फिर एक जिम्मेदार परमाणु देश के तौर पर किम जोंग को तैयार कर अमेरिका के सामने बातचीत की टेबल पर बैठने के लिए राजी किया.
वाकई ये कहानी किसी साइंस फिक्शन फिल्म से कम नहीं है और इसकी पटकथा कैसे और किसने लिखी ये किम जोंग ही बेहतर जानते भी हैं. इस ऐतिहासिक परमाणु शिखर वार्ता की कामयाबी के बाद अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में चीन और मजबूत बन कर उभरा है. पर्दे के पीछे रहने के बावजूद चीन ने ये साबित कर दिया कि वो दुनिया के सबसे संवेदनशील मसले को सुलझाने में कितना सक्षम है. इस वार्ता के जरिए चीन दुनिया में खुद के सुपरपावर होने के दावे को मजबूत करने में भी कामयाब रहा है.
Beijing : In this March 27, 2018, photo, North Korean leader Kim Jong Un, left, shakes hands with Chinese counterpart Xi Jinping at Diaoyutai State Guesthouse in Beijing, China. North Korea's leader Kim Jong Un and his Chinese counterpart Xi Jinping sought to portray strong ties between the long-time allies despite a recent chill as both countries on Wednesday, March 28, 2018, confirmed Kim's secret trip to Beijing this week. The content of this image is as provided and cannot be independently verified. Korean language watermark on image as provided by source reads: "KCNA" which is the abbreviation for Korean Central News Agency. AP/PTI(AP3_28_2018_000025B)
बहरहाल किम और ट्रंप इतिहास को पीछे छोड़कर आगे बढ़ चुके हैं. किम जोंग एक नया उत्तर कोरिया बनाना चाहते हैं जो कि दुनिया से अलग-थलग न हो और भुखमरी-गरीबी के चलते वहां से लोगों का पलायन न हो. हथियारों की भूख मिटाने के बाद अब किम देश में गरीबों की भूख मिटाने के लिए अमेरिका के सामने सशर्त और सम्मानजनक समझौता कर चुके हैं और अमेरिका के सामने न झुक कर उन्होंने ये साबित भी कर दिया कि राष्ट्र सम्मान के लिये वो परमाणु हमला झेलने और करने के लिये भी तैयार थे.
तो वहीं अब तक अपने ही घर में कई राजनीतिक मोर्चों पर घिरे ट्रंप को राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बड़ी और ऐतिहासिक कामयाबी मिली है जिसका इस्तेमाल वो अपनी छवि की नई सिरे से ब्रान्डिंग में जरूर करेंगे. ट्रंप ने पूर्वर्ती राष्ट्रपतियों से अलग चलते हुए उत्तर कोरिया के साथ बातचीत की नायाब पहल की और ऐतिहासिक परमाणु शिखर-वार्ता की. ट्रंप अपने देश के साथ दुनिया में भी ये संदेश देने में कामयाब हुए हैं कि वो विश्व शांति के लिये विदेश नीति में बदलाव भी कर सकते हैं तो अमेरिकी सुरक्षा के लिये पूर्वाग्रहों से हटकर नए फैसले भी ले सकते हैं.
इस शिखर वार्ता के जरिये ट्रंप और किम ने निजी तौर पर भी बहुत कुछ हासिल किया है. फिलहाल दुनिया के ऊपर से परमाणु युद्ध का खतरा टल चुका है. 12 जून 2018 की तारीख इतिहास के पन्नों में सिर्फ इसी वजह से याद रखी जाएगी.

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