#JHARKHAND : तृतीय-चतुर्थ श्रेणी पद पर नौकरी : 11 जिलों में भी स्थानीय निवासी होने का लग सकती है शर्त
धनबाद, पलामू, गढ़वा, हजारीबाग, रामगढ़, कोडरमा, चतरा, बोकारो, गिरिडीह, देवघर और गोड्डा जिले में भी अधिसूचित क्षेत्र की तर्ज पर नई नियोजन नीति लागू हो सकती है। ऐसा होने पर अगले 10 वर्षों तक वर्ग तीन और चार की सरकारी नौकरी तभी मिलेगी जब वे उन्हीं जिलों के स्थानीय निवासी होंगे। गैर अधिसूचित क्षेत्र के 11 जिलों के नियोजन नीति की समीक्षा के लिए भूराजस्व मंत्री अमर कुमार बाउरी की अध्यक्षता में गठित उच्चस्तरीय समिति ने रिपोर्ट तैयार कर ली है।
7 अप्रैल को समिति की बैठक संभावित है। इसमें समिति की औपचारिक स्वीकृति लेकर रिपोर्ट सरकार को सौंपी जाएगी। रिपोर्ट के आधार पर सरकार अंतिम निर्णय लेगी। 24 जिलों में से शिड्यूल एरिया के 13 जिले रांची, साहेबगंज, पाकुड़, दुमका, जामताड़ा, लातेहार, खूंटी, गुमला, लोहरदगा, सिमडेगा, सरायकेला, पूर्वी एवं प. सिंहभूम हैं। वर्ष 2016 से लागू नियोजन नीति के तहत इन 13 जिलों में जिला कैडर के पदों पर 10 साल तक उसी जिले के स्थानीय निवासी का बहाली होने का प्रावधान है। समिति के प्रस्ताव को स्वीकार करने पर अब सभी जिलों में जिला कैडर के वर्ग तीन और चार के पदों पर उन जिलों के स्थानीय निवासी को ही नौकरी मिल सकेगी।
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छत्तीसगढ़ की नियोजन नीति को बनाया है आधार
समिति ने छत्तीसगढ़ की नियोजन नीति को आधार बनाया है। छत्तीसगढ़ के तर्ज पर ही गैर अधिसूचित जिलों में भी स्थानीय के लिए रिजर्व करने संबंधी नियोजन नीति लागू करने की अनुशंसा कर रही है।
समिति के प्रस्ताव और अनुशंसा
प्रस्ताव 1. : समिति ने प्रस्ताव तैयार किया है कि गैर अधिसूचित 11जिलों में तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पद पर उन्हीं को नौकरी मिले, जो इन जिलों के स्थानीय निवासी हो।
इस प्रस्ताव से जुड़ा सवाल : स्थानीय निवासी कौन होगा?
जवाब : सरकार द्वारा तय स्थानीय नीति को ही स्थायी निवासी का मापदंड माना है। जो भी लोग 1985 से पहले से जिला में रह रहे हैं और अन्य अर्हता पूरा कर रहे है जिला के स्थानीय निवासी कहलाएंगे।
प्रस्ताव 2 :जे पीएसपी प्रारंभिक परीक्षा में आरक्षण के आधार पर परीक्षार्थी का वर्गीकरण फार्म जमा लेने के साथ नहीं हो। आरक्षण कोटा का परीक्षार्थी सामान्य तरीके से परीक्षा में सफलता प्राप्त करे तो उसे आरक्षण कोटा में नहीं रखा जाए।
इस प्रस्ताव से जुड़ा सवाल : तो क्या आरक्षण का लाभ न दिया जाए?
जवाब :आरक्षण का लाभ जरूर दिया जाए, पर वहां दिया जाए, जहां जरूरत है। अगर कोई आरक्षण कोटा का परीक्षार्थी सामान्य तरीके से सफलता प्राप्त करे,पर एक जगह जाकर वह पीछे छूट जाए तो फिर वहां उसे आरक्षण का लाभ मिले।
इन बिंदुओं पर समिति में जिच : क्या नई नियोजन नीति बनने तक बहाली न हो? पहले नई नियोजन नीति बने या फिर पहले बहाली हो...? इन सवालों पर समिति में जच रहा है। समिति के कुछ सदस्य चाहते हैं कि सरकार पहले नियोजन नीति पर विचार करे, उसे लागू करे और फिर बहाली हो। पर समिति के कुछ सदस्यों का मानना है कि बहाली न रोकी जाए।
छत्तीसगढ़ की नीित से फंस सकता है कानूनी पेंच
उच्चस्तरीय समिति तो छत्तीसगढ़ की नियोजन नीति को आधार बना कर झारखंड में भी अधिसूचित और गैर अधिसूचित क्षेत्र के जिलों के लिए एक ही तरह की नियोजन नीति बनाने की अनुशंसा कर रही है। लेकिन दोनों राज्यों की बहाली प्रक्रिया में अंतर है। इसलिए यहां लागू करने में कानूनी पेंच भी फंस सकता है। इसे ठीक करने पर मंथन भी जारी है। छत्तीसगढ में अराजपत्रित (वर्ग तीन और चार) पदों के लिए संबंधित विभाग व जिला संवर्ग कंट्रोलर द्वारा नियुक्ति की जाती है। वही विज्ञापन निकालता है। उस विज्ञापन में लिखा रहता है कि आवेदन उसी जिले के लोग कर सकते हैं। लेकिन झारखंड में अराजपत्रित पदों के लिए राज्य कर्मचारी चयन आयोग के माध्यम से नियुक्ति होती है। वही विज्ञापन निकालता है। आयोग के विज्ञापन में जिला के जिला का शर्त लगाना कितना वैधानिक होगा इसका रास्ता निकालना पड़ेगा।
कौन-कौन पद हैं जिला स्तरीय : सरकार ने जिन पदों को जिला स्तरीय चिह्नित किया है, उनमें प्राथमिक शिक्षक, जनसेवक, पंचायत सचिव, आरक्षी, चौकीदार, वनरक्षी, एएनएम जैसे पद हैं।
क्या है अधिसूचित जिला और उसकी नियोजन नीति : आदिवासी बाहुल क्षेत्र के तहत 13 जिले अधिसूचित जिले के रूप में चिन्हित हैं। जिला कैडर का पद जिला के स्थानीय लोगों के लिए अगले 10 साल तक रिजर्व है।
अभी क्या है गैर अधिसूचित क्षेत्र की नियोजन नीति : किसी भी जिला के लोग इन जिलों में नौकरी पा सकते हैं। तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पदों पर नौकरी पाने के लिए उसी जिले का स्थानीय निवासी हाेने की बाध्यता नहीं है। यहां पर कहीं के भी नागरिक तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की सरकारी नौकरी प्राप्त कर सकते हैं।
धनबाद, पलामू, गढ़वा, हजारीबाग, रामगढ़, कोडरमा, चतरा, बोकारो, गिरिडीह, देवघर और गोड्डा जिले में भी अधिसूचित क्षेत्र की तर्ज पर नई नियोजन नीति लागू हो सकती है। ऐसा होने पर अगले 10 वर्षों तक वर्ग तीन और चार की सरकारी नौकरी तभी मिलेगी जब वे उन्हीं जिलों के स्थानीय निवासी होंगे। गैर अधिसूचित क्षेत्र के 11 जिलों के नियोजन नीति की समीक्षा के लिए भूराजस्व मंत्री अमर कुमार बाउरी की अध्यक्षता में गठित उच्चस्तरीय समिति ने रिपोर्ट तैयार कर ली है।
7 अप्रैल को समिति की बैठक संभावित है। इसमें समिति की औपचारिक स्वीकृति लेकर रिपोर्ट सरकार को सौंपी जाएगी। रिपोर्ट के आधार पर सरकार अंतिम निर्णय लेगी। 24 जिलों में से शिड्यूल एरिया के 13 जिले रांची, साहेबगंज, पाकुड़, दुमका, जामताड़ा, लातेहार, खूंटी, गुमला, लोहरदगा, सिमडेगा, सरायकेला, पूर्वी एवं प. सिंहभूम हैं। वर्ष 2016 से लागू नियोजन नीति के तहत इन 13 जिलों में जिला कैडर के पदों पर 10 साल तक उसी जिले के स्थानीय निवासी का बहाली होने का प्रावधान है। समिति के प्रस्ताव को स्वीकार करने पर अब सभी जिलों में जिला कैडर के वर्ग तीन और चार के पदों पर उन जिलों के स्थानीय निवासी को ही नौकरी मिल सकेगी।
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छत्तीसगढ़ की नियोजन नीति को बनाया है आधार
समिति ने छत्तीसगढ़ की नियोजन नीति को आधार बनाया है। छत्तीसगढ़ के तर्ज पर ही गैर अधिसूचित जिलों में भी स्थानीय के लिए रिजर्व करने संबंधी नियोजन नीति लागू करने की अनुशंसा कर रही है।
समिति के प्रस्ताव और अनुशंसा
प्रस्ताव 1. : समिति ने प्रस्ताव तैयार किया है कि गैर अधिसूचित 11जिलों में तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पद पर उन्हीं को नौकरी मिले, जो इन जिलों के स्थानीय निवासी हो।
इस प्रस्ताव से जुड़ा सवाल : स्थानीय निवासी कौन होगा?
जवाब : सरकार द्वारा तय स्थानीय नीति को ही स्थायी निवासी का मापदंड माना है। जो भी लोग 1985 से पहले से जिला में रह रहे हैं और अन्य अर्हता पूरा कर रहे है जिला के स्थानीय निवासी कहलाएंगे।
प्रस्ताव 2 :जे पीएसपी प्रारंभिक परीक्षा में आरक्षण के आधार पर परीक्षार्थी का वर्गीकरण फार्म जमा लेने के साथ नहीं हो। आरक्षण कोटा का परीक्षार्थी सामान्य तरीके से परीक्षा में सफलता प्राप्त करे तो उसे आरक्षण कोटा में नहीं रखा जाए।
इस प्रस्ताव से जुड़ा सवाल : तो क्या आरक्षण का लाभ न दिया जाए?
जवाब :आरक्षण का लाभ जरूर दिया जाए, पर वहां दिया जाए, जहां जरूरत है। अगर कोई आरक्षण कोटा का परीक्षार्थी सामान्य तरीके से सफलता प्राप्त करे,पर एक जगह जाकर वह पीछे छूट जाए तो फिर वहां उसे आरक्षण का लाभ मिले।
इन बिंदुओं पर समिति में जिच : क्या नई नियोजन नीति बनने तक बहाली न हो? पहले नई नियोजन नीति बने या फिर पहले बहाली हो...? इन सवालों पर समिति में जच रहा है। समिति के कुछ सदस्य चाहते हैं कि सरकार पहले नियोजन नीति पर विचार करे, उसे लागू करे और फिर बहाली हो। पर समिति के कुछ सदस्यों का मानना है कि बहाली न रोकी जाए।
छत्तीसगढ़ की नीित से फंस सकता है कानूनी पेंच
उच्चस्तरीय समिति तो छत्तीसगढ़ की नियोजन नीति को आधार बना कर झारखंड में भी अधिसूचित और गैर अधिसूचित क्षेत्र के जिलों के लिए एक ही तरह की नियोजन नीति बनाने की अनुशंसा कर रही है। लेकिन दोनों राज्यों की बहाली प्रक्रिया में अंतर है। इसलिए यहां लागू करने में कानूनी पेंच भी फंस सकता है। इसे ठीक करने पर मंथन भी जारी है। छत्तीसगढ में अराजपत्रित (वर्ग तीन और चार) पदों के लिए संबंधित विभाग व जिला संवर्ग कंट्रोलर द्वारा नियुक्ति की जाती है। वही विज्ञापन निकालता है। उस विज्ञापन में लिखा रहता है कि आवेदन उसी जिले के लोग कर सकते हैं। लेकिन झारखंड में अराजपत्रित पदों के लिए राज्य कर्मचारी चयन आयोग के माध्यम से नियुक्ति होती है। वही विज्ञापन निकालता है। आयोग के विज्ञापन में जिला के जिला का शर्त लगाना कितना वैधानिक होगा इसका रास्ता निकालना पड़ेगा।
कौन-कौन पद हैं जिला स्तरीय : सरकार ने जिन पदों को जिला स्तरीय चिह्नित किया है, उनमें प्राथमिक शिक्षक, जनसेवक, पंचायत सचिव, आरक्षी, चौकीदार, वनरक्षी, एएनएम जैसे पद हैं।
क्या है अधिसूचित जिला और उसकी नियोजन नीति : आदिवासी बाहुल क्षेत्र के तहत 13 जिले अधिसूचित जिले के रूप में चिन्हित हैं। जिला कैडर का पद जिला के स्थानीय लोगों के लिए अगले 10 साल तक रिजर्व है।
अभी क्या है गैर अधिसूचित क्षेत्र की नियोजन नीति : किसी भी जिला के लोग इन जिलों में नौकरी पा सकते हैं। तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पदों पर नौकरी पाने के लिए उसी जिले का स्थानीय निवासी हाेने की बाध्यता नहीं है। यहां पर कहीं के भी नागरिक तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की सरकारी नौकरी प्राप्त कर सकते हैं।
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