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Friday 12 January 2018

वेतन सुनकर बोला युवक : अचार बेचकर इससे ज्यादा कमा लेंगे

Skill Summit 2018 : खेलगांव में नौकरी की 'दौड़', वेतन सुनकर बोला युवक : अचार बेचकर इससे ज्यादा कमा लेंगे
 झारखंड की राजधानी रांची में स्थित है खूबसूरत खेलगांव. खेलगांव में इन दिनों काफी हलचल है. कई विभागों के सचिवों के साथ-साथ अलग-अलग जिलों के उपायुक्तों, बीडीओ, एसडीपीओ और कौशल विकास विभाग के अन्य अधिकारियों की गाड़ियां लगातार आ रही हैं, जा रही हैं. बसों में भर-भरकर युवा रोजगार की आस में खेलगांव पहुंच रहे हैं.

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कौशल विकास योजना के तहत प्रशिक्षण केंद्र का संचालन करने वाले संगठनों के अलावा राज्य में संचालित कॉलेज भी लोगों को खेलगांव भेज रहे हैं. लोग उज्ज्वल भविष्य का सपना लेकर यहां आ रहे हैं. घंटों लाईन लगा रहे हैं, रजिस्ट्रेशन करवाकर इंटरव्यू दे रहे हैं. जब हकीकत से सामना होता है, तो उनकी सारी उम्मीदों पर पानी फिर जाता है.
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खेलगांव में गुरुवार को कई युवा मिले, जो इस उम्मीद से यहां पहुंचे कि मल्टीनेशनल कंपनियों में उन्हें रोजगार मिलेगा. मोटा पैकेज मिलेगा. अपने राज्य में, अपने लोगों के बीच रहेंगे. काम करेंगे. वेतन थोड़ा कम भी मिले, तो भी चलेगा. लेकिन, ऑफर सुना, तो निराश हो गये. चक्रधरपुर के जेएलएन कॉलेज से बीबीए करने वाले इसलाम शेख ने जब सुना कि कंपनियां 8 से 15 हजार रुपये के बीच वेतन दे रही हैं, तो उन्होंने कहा कि इतना तो अचार बेचकर कमा लेंगे. इसके लिए घर छोड़कर दूसरे राज्य में जाने की क्या जरूरत है.
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जमशेदपुर के करीम सिटी कॉलेज से बीबीए और राउरकेला के रिम्स से एमबीए की पढ़ाई करने वाले शाहबाज की समस्या अलग है. उन्होंने एमबीए की डिग्री ली है, लेकिन उनकी यह डिग्री यहां मान्य नहीं है. उन्हें बताया गया कि ओड़िशा की यह डिग्री झारखंड में मान्य नहीं है. हालांकि, उन्होंने मैट्रिक, इंटर और ग्रेजुएशन की पढ़ाई झारखंड से पूरी की है. शाहबाज की तरह शादाब अहमद ने भी एमबीए की पढ़ाई की है. उनके साथ भी यही समस्या है. एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बावजूद अपनी योग्यता उन्हें बीबीए ही लिखनी पड़ी. शादाब कहते हैं कि यदि उन्होंने ओड़िशा से एमबीए की पढ़ाई की, तो इसकी वजह झारखंड की सरकार ही है. यदि झारखंड में उच्च शिक्षा की उचित व्यवस्था होती, तो उन्हें ओड़िशा का रुख नहीं करना पड़ता.
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शादाब कहते हैं कि वह झारखंड में ही 22 हजार रुपये कमा रहे हैं. 10-15 हजार रुपये के लिए किसी और राज्य में क्यों जायेंगे? शादाब हों, शाहबाज या इसलाम. सबने यही कहा कि कॉलेज की मदद से वे लोग रांची तो आ गये, लेकिन यहां आकर उन्हें काफी निराशा हुई. इन लोगों ने कहा कि झारखंड सरकार के इस आयोजन से कंपनियां लाभान्वित हुई हैं, झारखंड के बेरोजगार नहीं.
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इनके मुताबिक, यदि 8,000 या 10,000 रुपये की नौकरी करनी हो, तो फिर उच्च शिक्षा लेने की क्या जरूरत है. रांची का एक ऑटो चालक महीने का 15 से 20 हजार रुपये कमा लेता है. यह आयोजन कंपनियों की मदद करने के लिए है. कंपनियों को मुफ्त में जगह मिल गयी, उनका प्रचार भी मुफ्त में हो गया और उन्हें किसी कंपनी को कंसल्टेंसी फीस भी नहीं देनी पड़ी. लेकिन, जिन लोगों के नाम पर इतना बड़ा आयोजन किया गया, उन्हें कोई खास लाभ नहीं हुआ.

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