जमशेदपुर।झारखंड के जमशेदपर से करीब 40 किलोमीटर दूर एक मंदिर ऐसा हैं जहां महिलाएं पूजा कर सकती हैं, भगवान को प्रसाद भी चढ़ा सकती हैं लेकिन प्रसाद खाने की उन्हें परमिशन नहीं हैं। 200 साल पुराने इस हाथीखेदा मंदिर में दूर-दूर से लोग दर्शन करने आते हैं।
महिलाओं ने कही ये बात
- मंदिर में तिलक लगाने और रक्षा सूत बांधने की भी मनाही है। हालांकि यह कोई नहीं जानता कि ऐसा क्यों है। दर्शन के लिए मंदिर पहुंची महिलाओं से बात की तो वे बोलीं- महिलाओं के प्रसाद ग्रहण न करने की परंपरा बहुत पुरानी है। इस मान्यता के पीछे वजह क्या है, इसे न तो यहां के पुजारी बता पाते हैं और न मंदिर समिति के लोग।
- मंदिर में तिलक लगाने और रक्षा सूत बांधने की भी मनाही है। हालांकि यह कोई नहीं जानता कि ऐसा क्यों है। दर्शन के लिए मंदिर पहुंची महिलाओं से बात की तो वे बोलीं- महिलाओं के प्रसाद ग्रहण न करने की परंपरा बहुत पुरानी है। इस मान्यता के पीछे वजह क्या है, इसे न तो यहां के पुजारी बता पाते हैं और न मंदिर समिति के लोग।
- महिलाओं का कहना है कि वर्षों से परंपरा चली आ रही है। सो उसका पालन कर रहे हैं। अंधविश्वास यह है कि महिलाओं के प्रसाद खाने से परिवार में अपशगुन हो सकता है। जबकि मंदिर में दर्शन के लिए आनेवाले भक्तों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या अधिक होती है।
- महिलाओं को हाथीखेदा बाबा पर आस्था है और परंपराओं का निर्वाह करते हुए वे सिर्फ पूजा करती हैं। मंदिर के मुख्य पुजारी गिरिजा प्रसाद सिंह सरदार इस परंपरा को आगे भी जारी रखने की बात कहते हैं। आदिवासी समाज के कुल देवता की पूजा हाथीखेदा मंदिर में होती है।
- मंदिर परिसर में भक्त पेड़ों में नारियल बांधने के साथ बाबा को घंटी चढ़ाते हैं। मंदिर के पुजारी के अनुसार, करीब 200 साल पहले इस इलाके में हाथियों का आतंक था।
- हाथियों का झुंड फसलों को नुकसान पहुंचाने के साथ ही लोगों को मार देता था। इससे बचने के लिए लोगों ने कुल देवता से प्रार्थना की। इसके बाद हाथियों का आना बंद हो गया। खुशी से ग्रामीणों ने पटमदा में मंदिर बनवाया।
- लोगों का मानना था कि बाबा के प्रभाव से ही हाथियों का आना बंद हुआ है इसलिए हाथीखेदा बाबा के नाम से यहां पूजा शुरू हो गई।
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