साहेबगंज का ऐतिहासिक तेलियागढ़ी किला अब अपनी पहचान खोने के कगार पर है. सल्तनत और मुगलकाल में कभी बंगाल का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले इस किले का अब अस्तित्व मिटने लगा है.
राजा तेलिया ने इस किले का निर्माण कराया था. तब ये बेहतरीन किलों में शुमार था. ये ना सिर्फ खूबसूरती बल्कि सुरक्षा के लिहाज से भी महत्वपूर्ण था. जिसका इतिहास में भी वर्णन मिलता है.
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साहिबगंज जिले में स्थित इस किले की मौजूदगी का प्रमाण मौर्य काल से ही मिलने लगते हैं। चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में आये यवन राजदूत मेगास्थनीज ने अपनी पुस्तक इंडिका में गंगा नदी से सटे पहाड़ी पर काले पत्थरों से निर्मित बड़े बौद्ध विहार का उल्लेख किया है। जो अब तेलियागढ़ी के नाम से जाना जाता है।
हर्षवर्द्धन के समय में इस क्षेत्र से गुजरे चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी इस किले का उल्लेख किया है। सोलहवीं सदी में भारत आए ईरानी यात्री अब्दुल लतीफ एवं अठारवीं सदी में इधर से होकर गुजरे फ्रांसिस बुकानन ने भी अपनी रचनाओं में इसे बड़े क्षेत्र में स्थित बताया है। जो अभी छोटे स्वरूप में दिखता है। परन्तु तेलियागढ़ी किला के पांच सौ मीटर पूर्व-पश्चिम में स्थित कई टीलों में मौजूद अवशेषों को देखकर लगता है कि विभिन्न विदेशी यात्रियों ने इस किले के बारे में जो लिखा है उसके अनुसार अपने काल में यह किला काफी लंबाई चौड़ाई में स्थित रहा होगा। किले की तत्कालीन लंबाई चौड़ाई का अनुमान किले से पूर्व करीब पांच सौ मीटर दूरी पर स्थित टिल्हे से झलकती मध्यकालीन दीवारों से लगाया जा सकता है। इसी प्रकार किले से पश्चिम रक्सी स्थान से उत्तर सिमरतल्ला झील में नौकाओं के लंगर डालने का स्थान भी इस बात का प्रमाण है कि यह किला करीब एक किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ था। फिर करमटोला रेलवे स्टेशन से पश्चिम एक टील्हे पर बने पुराने समय के रेल सिगनल घर के नीचे झलकती मध्यकालीन दीवारों से भी इसके फैलाव के प्रमाण मिलते हैं।
मेगास्थनीज और ह्वेनसांग ने इस किले को उस जमाने की बेहतरीन कलाकृतियों में से एक बताया है. ये किला मुगल काल के कई राजाओं के बारे में भी जानकारी देता है. तब राजा बंगाल जाने से पहले यहां विश्राम किया करते थे.
साहेबगंज में मंडरो प्रखंड में स्थित ये किला अब खंडहर से अधिक कुछ नहीं लगता और असमाजिक तत्वों का अड्डा बन है. इस सिलसिले में जिला प्रशासन को कई बार सूचित भी किया गया. लेकिन अबतक कोई पहल नहीं हुई है.
तेलियागढ़ी किला को बचाने के लिए समय-समय पर सामाजिक संगठनों के द्वारा प्रयास किए जाते रहे हैं. जंगल बन चुके स्मारक की साफ-सफाई भी की जाती रही है. असमाजिक तत्वों के खिलाफ अभियान भी चलाए जाते रहे हैं.
प्रखंड के बीडीओ बताते हैं कि सरकार को उपायुक्त के माध्यम से कई बार इसके सौन्दर्यीकरण का प्रस्ताव भेजा गया. लेकिन अबतक कोई निर्देश नहीं आया. हालांकि छोटे स्तर पर इसे बचाने के प्रयास जारी हैं
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