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Monday 30 October 2017

भूत होने के वहम में 42 साल तक बंद रहा यह रेलवे स्‍टेशन


रांची रेल मंडल का एक स्टेशन है बेगुनकोदर. झालदा व कोटशीला रेलवे स्टेशन के बीच दरअसल यह एक हॉल्ट है. रांची-बोकारो रेलखंड पर यात्रा करनेवाले जानते हैं कि पुरूलिया जिले का यह स्टेशन वर्ष 2009 में बना था. तब आज के मुकाबले यहां ज्यादा सन्नाटा था. स्टेशन के पास अब थोड़ी बसावट है.

वहीं पास में चार गांव वामनिया, नलकुपी, कानुडीह व डुरगू हैं. पर बेगुनकोदर के बारे पता चला कि यह स्टेशन काफी पुराना है. यह जान कर हैरत होगी कि एक भूत की कहानी ने इसे 42 साल तक बंद रखा. वर्ष 2009 में जब ममता बनर्जी रेल मंत्री थीं, तो उन्होंने यह कहते हुए इस स्टेशन को दोबारा खोलने को कहा कि…. आमी भूते विश्वास कोरिना (मैं भूत में विश्वास नहीं करती).

दरअसल 1967 में रेलवे ने इस स्टेशन को भुतहा मान कर बंद कर दिया था, जो करीब 42 साल (वर्ष 2009) तक बंद रहा. पुराने लोगों के अनुसार उस वक्त के स्टेशन मास्टर ने रात में सफेद साड़ी पहनी एक महिला को पटरियों पर घूमते देखा था. दूसरे ही दिन उनकी मौत हो गयी. इसके बाद वहां के रेलकर्मियों के मन में यह बात बैठ गयी कि स्टेशन पर भूत है.

रेलवे को यह जमीन दान में मिली थी. बेगुनकोदर की रानी लचन कुमारी ने अपनी जमीन रेलवे को दान दी थी. हवा यह उड़ायी गयी कि वह भूत दरअसल लचन कुमारी ही है.

इस भूत का भय कुछ ऐसा हुआ कि कोई रेलकर्मी इस स्टेशन पर रहना नहीं चाहता था, लिहाजा इसे रेलवे ने बंद कर दिया. अब इस स्टेशन को फिर से खोल दिया गया है. अब स्थानीय लोगों सहित रेलकर्मी भी भूत की कहानी को बकवास बताते हैं. उनका कहना है कि उन्होंने यहां कभी किसी भूत को नहीं देखा.

रविवार को स्टेशन पर ही गाय चरा रहे वासुदेव महतो ने बताया, भूत की बात मिथ्या है. स्टेशन पर ही तैनात सिविल पुलिस (पं बंगाल सरकार ने जीआरपी के अलावा इन्हें भी रेलवे स्टेशनों पर तैनात किया है.

अनुबंध पर कार्यरत सिविल पुलिस को प्रति माह साढ़े पांच हजार रु मिलते हैं) के जवान दुर्गा चरण नायक व उनके एक दोस्त भोला नाथ महतो ने कहा कि उन्होंने या किसी अन्य ने स्टेशन पर आज तक भूत नहीं देखा. स्टेशन पर कर्मी ढुलु महतो व उनके भाई कमल रतन महतो मौजूद थे. ढुलु बेगुनकोदर के अनुबंध आधारित अकेले रेल कर्मी हैं. जब वह नहीं रहते, तो स्टेशन में टिकट बेचने का काम कमल करते हैं. एक टिकट बेचने पर इन्हें सवा रुपये मिलते हैं. पहले यह कमीशन एक रुपया था. पूछे जाने पर कमल ने बताया यहां कोई भूत-वूत नहीं है.

बाहरी लोगों का कौतुहल

स्थानीय लोग भूत की इस कहानी को भले बकवास बताते हों, पर इंटरनेट पर इस स्टेशन के नाम का प्रचार कुछ एेसा है कि हर महीने कई जिज्ञासु लोग यहां यह पता करने आते हैं कि वो कौन थी? या वो कौन है? दुर्गा चरण व उनके मित्र ने बताया कि यहां अक्सर कोलकाता व अन्य शहरों से लोग भूत देखने अाते हैं.

इस स्टेशन पर रात को कई बार जिज्ञासु लोगों को अकेले या निजी सुरक्षा कर्मियों के साथ देखा जा सकता है. अभी साल भर पहले की एक कहानी दिलचस्प है. दुर्गा चरण ने बताया, एक सज्जन यहां कुछ उपकरण लेकर आये थे. इनमें एक लाइट जल रही थी. उन्होंने कहा कि भूत रहा, तो लाइट बंद हो जायेगी. आधी रात को वह लाइट बंद हो गयी. इसके बाद तो उस सज्जन की हालत देखने लायक थी. वह अपना उपकरण लेकर वहां से फरार हो गये.

स्टेशन पर लाइट भी नहीं

जिस स्टेशन के बारे वहां भूत होने की कहानी हो, वहां बिजली न होना इसे अौर हॉरर बनाता है. बेगुनकोदर स्टेशन पर बिजली व लाइट नहीं है. अभी यहां एक सोलर लाइट लगी है, जो खराब है. रेल कर्मी ढुलु महतो ने कहा कि अब तक तीन पैंसेजर ट्रेन ही रुकती थी. शाम 5.16 बजे के बाद वहां किसी ट्रेन का ठहराव नहीं था. पर अब रात नौ बजे की पैसेंजर ट्रेन बर्दवान -बोकारो का भी ठहराव शुरू किया गया है. पर स्टेशन पर लाइट न होने से बहुत परेशानी होती है. कुछ लोग तरह-तरह की बात करते हैं.

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