अभिषेक चौबे बॉलीवुड के उन गिने चुने निर्देशकों की जमात में आते है जो अपनी फिल्म के साथ किसी भी तरह का समझौता नहीं करते है. अगर इश्किया और डेढ़ इश्किया के लिए उन्होंने कई जगहों पर चेस्ट उर्दू का सहारा लिया था तो वही दूसरी तरफ अपनी ताजा फिल्म सोनचिड़िया में भाषा के मामले में पर्दे पर वही तस्वीर उतारी है जो किसी जमाने में वहा के खूंखार डाकुओं की बोली हुआ करती थी. फिल्म को देख कर पता चलता है कि उनकी पकड़ उनकी इस कहानी पर कितनी मजबूत है और एक पल के लिए भी उन्होंने अपनी कमान फिल्म के ऊपर ढीली नहीं होने दी है. बेहतरीन अभिनय से सरोबार इस फिल्म के बारे में ये कहा जा सकता है की साल 2019 में अब तक जो भी फिल्में रिलीज हुई है उनमें से अभी तक ये सबसे बेहतर फिल्म है हर मामले. सन 1970 - जब बीहड़ में डाकुओं का आतंक हुआ करता था - उसकी एक जिन्दा तस्वीर दर्शकों के सामने परोसने में अभिषेक चौबे पूरी तरह से कामयाब रहे है. बॉलीवुड में डाकुओं की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्मों की फेहरिस्त में इसका नाम उम्दा फिल्मों की श्रेणी में शुमार होगा. कहानी डाकू मान सिंह और उनके दो टोलियों की है फिल्म का पीरियड सन 1970 का है जब बीहड़ में डाकुओं का बोलबाला हुआ करता था. फिल्म की शुरुआत डकैतों के सरगना मान सिंह (मनोज बाजपेयी) से होती है. मान सिंह की टोली के हिस्सा है लखना (सुशांत सिंह राजपूत) और वकील सिंह (रणवीर शौरी) जो भगवान् के प्रकोप से डरते है और हर बार अपनी जमीर की बात करते है. आपातकाल की पृष्टभूमि में सोनचिड़िया की कहानी चलती है और जब विजेंदर सिंह गुज्जर (आशुतोष राणा) मान सिंह को मारने में सफल हो जाता है तक गैंग का बिखराव शुरू हो जाता है. कर्म और धरम के नाम पर लखना और वकील के बीच की खाई बढ़ती ही चली जाती है. जिस तरह से फिल्म के निर्देशक अभिषेक चौबे और लेखक सुदीप शर्मा ने फिल्म का खाका बनाया है वो लाजवाब है. फिल्म में ऐसा एक भी पल नहीं है जिसमें आपको नयापन का एहसास नहीं होता है. फिल्म देखते वक्त आपको इसी बात का एहसास होगा की आप कुछ पलों के लिए उसी दुनिया में चले गए है. सुशात, रनवीर, मनोज और भूमि का शानदार अभिनय सोनचिड़िया उन फिल्मों की श्रेणी में आती है जहा पर सभी कलाकारों में अपना 100 प्रतिशत दिया है. सुशांत सिंह राजपूत की पिछली कुछ फिल्में बॉक्स ऑफिस पर चली नहीं थी लेकिन यह फिल्म चले या ना चले शायद इससे यह फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उनका काम फिल्म में बेहद ही शानदार है. लखना के किरदारों को उन्होंने पूरी तरह से जिया है। काम शब्दों में कहे तो मौजुदा दौर मे शायद उनके अलावा यह रोल और कोई नहीं कर सकता था. कुछ वही हाल है रणवीर शौरी का. देखकर अफसोस होता है की फिल्म के दूसरे हाफ में उनके किरदार को उतनी तरजीह नहीं दी गयी है. मान सिंह की भूमिका में मनोज बाजपेयी में है और उनका किरदार फिल्म में स्पेशल अपीयरेंस है लेकिन डाकू मलखान सिंह की याद दिलाने वाले वाले इस भूमिका में मनोज बाजपेयी ने कई चीजों को अपनी आंखों से ही बयां कर दिया है जो बेहद ही डरावना है. इंदुमती के रोल में भूमि पेडनेकर का भी काम काफी शानदार है. इसके अलावा सपोर्टिंग रोल्स में जतिन शर्मा, हरीश खन्ना और संजय श्रीवास्तव है जिन्होंने अपनी अपनी भूमिका में रंगमंच वाली बारीकियां भरी है जिसके बाद फिल्म देखने का मजा और दोगुना हो जाता है. अभिषेक चौबे और सुदीप शर्मा फिल्म के असली हीरो है सोनचिड़िया की खूबी इस बात में है की ये डकैती या हत्या के बारे में बात नहीं करती है बल्कि उससे आगे की बात करती है. इस फिल्म के तार डाकुओं के नैतिक संघर्ष से जुए हुए है. सोनचिड़िया समाज पर एक प्रहार भी है जब ये जातिवादी और पुरुषों के आधिपत्य की बात करती है. फिल्म का एक सीन जब कुछ डाकू खुले आसमान के नीचे आगे के भविष्य की बात करते हुए एक दूसरे से ये कहते है की जेल का समय बिताने के बाद वो एक अच्छा जीवन जी पाएंगे तो ये अपने आप में बहुत कुछ कह जाता है. निर्देशक अभिषेक चौबे और लेखक सुदीप शर्मा को इस फिल्म के लिए पुरे नंबर मिलने चाहिए. और फिल्म को सजाने में इसके सिनेमेटोग्राफर अनुज राकेश धवन का भी एक बहुत बड़ा हाथ है। सोंचिडिया के एक ऐसा फिल्म है जिसे आप मिस नहीं कर सकते है.
https://ift.tt/eA8V8J Latest News अभी अभी Firstpost Hindi
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Sports
Popular Posts
-
The Assam government has issued a travel advisory asking people to avoid travelling to Mizoram. It has also asked those from the state worki...
-
Parliament witnessed chaos for the eight straight day of its Monsoon Session with both Houses being repeatedly adjourned as the Opposition v...
-
Jaipur: Congress leader Rahul Gandhi on Tuesday accused Prime Minister Narendra Modi of destroying India's image as a country of peace ...
No comments:
Post a Comment