इसमें कोई दो-राय नहीं कि वारदात के बाद और अपराधी के मिलने तक, हमेशा पुलिस ही बदमाश-कंपनी की तलाश में उसके पीछे-पीछे फिरा करती है. अक्सर कहा-सुना तो यह भी जाता है कि पुलिस के आगे भूत भी भागते हैं. जमाने में भला वो कौन सा अपराधी होगा, जिसकी गर्दन तक कानून और पुलिस के पैने पंजे न पहुंच पाते हों! आदि-आदि... मतलब, बात जब खाकी-वर्दी की कारस्तानियों की आती है तो जितने मुंह उससे कहीं ज्यादा चर्चे. हम पुलिस से जुड़ा एक खास मामला लेकर आपके सामने आए हैं. आखिर क्या है पूरा माजरा? पुलिसिया कथनी-करनी में फर्क करना नामुमकिन! इस कहानी में आपको सब कुछ मिलेगा. हैरतअंगेज तथ्य. सस्पेंस, रोमांच. इसी कहानी में आपको देखने-पढ़ने को मिलेगा ‘स्कॉटलैंड’ स्टाइल पर काम करने का दम भरने वाली दिल्ली पुलिस के चेहरे के पीछे छिपा दूसरा चेहरा! कहानी है दक्षिणी-पूर्वी जिले के सरिता विहार थाना पुलिस की. एक ‘पद्मश्री’ प्राप्त उच्च-शिक्षित ‘पीड़ित’ रिटायर्ड प्रोफेसर-कवि के घर हुई चोरी की कहानी है. दिलचस्प है कि उस चोर या उन चोरों के कुख्यात सरगना की पूरी ‘जन्म-कुंडली’ पुलिस से पहले हमारे पास पहुंच चुकी है! पुलिस अभी तक अपराधियों के करीब पहुंचने की उम्मीद में महज मुखबिरों की बैसाखियों की ओर ही बेजान सी नजरों से निहारने को ही मजबूर है! ‘काका’ के कुनबे में मचा है कोहराम? अपराध की यह सच्ची घटना घटी है उसी शख्सियत की बेटी और दामाद के साथ. जमाने में जिसका कुनबा हमेशा रोते हुए इंसानों को हंसाने की ही जद्दोजहद से जूझता रहा है. मैं जिक्र कर रहा हूं हास-परिहास की दुनिया के मशहूर और अमिट नाम, हिंदी-काव्य जगत के आसमान में आज भी बदस्तूर चमक रहे (स्वर्गवासी होने के बाद भी) हास्य-कवि काका हाथरसी के अपनों की. काका जी की बेटी हैं बागेश्री. बागेश्री का भरा-पूरा परिवार करीब 29 साल से दिल्ली के सरिता विहार इलाके में रह रहा है. बागेश्री दिल्ली विश्वविद्यालय के शहीद भगत सिंह कॉलेज की रिटायर्ड एसोसियेट प्रोफेसर (हिंदी) हैं. उनके पति मशहूर लेखक और हास्य-कवि हैं. साथ ही वो जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर भी हैं. बागेश्री के पति के बारे में इस कहानी में आगे चलकर बात करेंगे. 9 फरवरी सन् 2019 (शनिवार) को शाम करीब 7 बजे के आसपास बागेश्री पति के साथ दिल्ली की सीमा पर बसे यूपी के हाईटेक शहर नोएडा में एक पारिवारिक मित्र के घर डिनर पर गई थीं. रात करीब 11 बजे घर लौटीं. फ्लैट के मुख्य द्वार पर उनकी नजर गई, तो मानो उन्हें काठ मार गया. वजह थी, आंखों के सामने जमीन पर टूटा पड़ा फ्लैट के मुख्य द्वार का ताला. उसके बाद अंदर वाले दरवाजे का भीतर से बंद हुआ मिलना, जबकि नोएडा जाते वक्त बागेश्री उसे बाहर से ‘लॉक’ करके गई थीं. ‘पद्मश्री’ प्रोफेसर को जब पुलिस ने पढ़ाया पाठ! सूचना पाकर जिला पुलिस कंट्रोल रूम (दक्षिणी-पूर्वी दिल्ली जिला) और थाना सरिता विहार पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. घटनास्थल पर पहुंचे पुलिस वालों ने पहले तो पीड़ित कवि-प्रोफेसर दंपति को ही आड़े-हाथ लिया. दंपति के मुताबिक एक पुलिसकर्मी ने बेहूदा सवाल दागा, ‘जब घर से बाहर जाते हो तो, दरवाजे पर ताला लटका कर क्यों जाते हो?’ केंद्रीय हिंदी संस्थान और हिंदी अकादमी दिल्ली के पूर्व उपाध्यक्ष घर में हुई लाखों की चोरी से पीड़ित थे. वो समझ ही नहीं पाए कि पुलिस वाले के उस ‘बेतुके’ सवाल का क्या जवाब दें? उनमें से एक जांचकर्मी ने मशविरा दिया, ‘जब भी रात-बिरात घर के बाहर जाओ तो, घर के अंदर थोड़ी ऊंची आवाज में ‘एफ.एम.रेडियो’ बजा कर छोड़ जाया करो!’ जब कम-अक्ल-पुलिसिया ‘ज्ञानी’ ने बांटा ज्ञान! जरा सोचिए, जिस इंसान के घर से ताले तोड़कर बुढ़ापे में उसकी उम्रभर की जमा-पूंजी एक झटके में बदमाश उड़ा ले जाएं! उसके दिल पर पुलिस के ऐसे बेहूदा सवाल-सलाह-मशविरे क्या काम करेंगे. करीब 50 लाख की चोरी के मामले में तमाम कथित कोशिशों के बाद भी अपराधियों को पकड़ पाने के नाम पर इतने दिन बाद भी दक्षिणी-पूर्वी दिल्ली जिले के सरिता विहार थाने की पुलिस वर्कआउट के नाम पर पुछ नहीं कर पाई है. सब पता है फिर भी खाली हाथ! मामले की ‘पड़ताल’ में जुटे इस लेखक ने पुलिस से भी बात की. सरिता विहार सब-डिवीजन के असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर (एसीपी) ढाल सिंह के मुताबिक, ‘जो जानकारी आपके (इस लेखक) पास है. वही हमारे पास है. मुलजिमों को पकड़ने की कोशिशें जारी हैं. ज्यादा कुछ बातें शेयर करना फिलहाल उचित नहीं होगा. जहां तक सवाल बदमाशों की फितरत का है तो वे बेवकूफ नहीं बहादुर हैं! इसीलिए उन तक पहुंचने में थोड़ा वक्त लग रहा है.’ जबकि सरिता विहार थाने के एसएचओ इंस्पेक्टर अजब सिंह की बानगी सुनिए, ‘हम लोग चोरों के पीछे लगे हैं. एक बार छापा मारा था. पुलिस की भनक लगते ही वे रफूचक्कर हो गए.’ बाबा ‘टाइट’ कर दिया है कहां जाएगा? जिस कार में वारदात को अंजाम देने पहुंचे थे उसके बारे में कुछ पता लगा? सवाल का माकूल जवाब देने के बजाय एसएचओ सवाल दागते हैं....‘अरे आपको काफी कुछ कैसे पता है?’ इस सवाल पर मैंने दूसरा सवाल दागा, ‘क्या चोरी में वांछित गिरोह का सरगना दिल्ली का कुख्यात बदमाश जयचंद उर्फ लल्ला है!’ सुनते ही एसएचओ साहब हड़बड़ा जाते हैं. पासा उल्टा पड़ता देखकर खुद ही बोलना शुरू कर देते हैं, ‘वारदात में इस्तेमाल कार दिल्ली के भलस्वा जहांगीरपुरी इलाके में रहने वाले एक साधू-बाबा की निकली है. बाबा जी कार को कुछ वक्त पहले जाने-अनजाने सेल-लेटर के आधार पर संदिग्ध चोरों को बेच चुके हैं.’ तो फिर बाबा ने कार आरोपियों के नाम पर अब तक ट्रांसफर क्यों नहीं कराई? पूछने पर एसएचओ बताते हैं कि, ‘पहले संदिग्ध अपराधी तो हाथ में आ जाएं. बाबा कहीं नहीं जाएगा. उसे टाइट कर दिया गया है.’ बात चूंकि सरिता विहार जैसे पॉश इलाके में करीब 50 लाख की चोरी की थी, सो हमने एसएचओ को और कुरेदा, ‘वैसे संदिग्धों के बारे में और कोई पुख्ता सूचना है आपके पास?’ जबाब मिला, ‘है तो काफी कुछ जानकारी. हम लोग (सरिता विहार पुलिस) पीछे भी पड़े हैं बदमाशों के. लेकिन संदिग्ध हाथ नहीं आ रहे हैं.’ लापरवाही-लाचारी में भी ‘तुर्रेबाजी’ तो ठीक नहीं! दरअसल हाई प्रोफाइल चोरी की यह वारदात दिल्ली पुलिस के गले की फांस बन चुकी है. मामला थाने चौकी से लेकर दिल्ली पुलिस मुख्यालय तक चर्चा में है. अगर यह चोरी किसी अंतरराष्ट्रीय ख्याति-प्राप्त कवि-शिक्षक के यहां नहीं हुई होती तो इसकी चर्चा पुलिस मुख्यालय तक भी भला क्यों होती? यह अलग बात है कि स्कॉटलैंड स्टाइल पर पड़ताल करने का दम भरने वाली दिल्ली पुलिस की तमाम कोशिशें अभी तक ‘नाकाम’ ही साबित हो रही हैं. इससे सवाल पैदा होता है कि मामले की पड़ताल में जुटी पुलिस लाचार साबित हो रही है या फिर लापरवाही है? ‘लॉकर’ जो पहले छोड़ गए अब तोड़ गए अब हाई प्रोफाइल चोरी में पीड़ित शख्स को जान लीजिए. दरअसल पीड़ित हास्य कवि का नाम है अशोक चक्रधर. वे मशहूर हास्य कवि काका हाथरसी के दामाद और मूलत: खुर्जा (बुलंदशहर यूपी) के रहने वाले हैं. जिस फ्लैट में घटना घटी, उसमें उनका परिवार पिछले 25-30 साल से रह रहा है. बकौल अशोक चक्रधर, ‘उनके इस फ्लैट में चोरी की यह दूसरी घटना है. साल 2004 में भी इसी फ्लैट में चोरी हुई थी. पहले वाले प्रयास में जिस मजबूत अलमारी और उसके लॉकर को चोर नहीं तोड़ पाए, उसे इस बार नेस्तनाबूद कर दिया. घर-कुनबे में दो-तीन शादियां थीं. बराबर में मौजूद दूसरे फ्लैट में मरम्मत का काम चल रहा था. इसी सबके चलते करीब 4-5 लाख रुपए कैश और तकरीबन 30-40 लाख के जेवरात घर में मौजूद थे. वारदात में सब कुछ चला गया.’ इसलिए हमसे परेशान है पुलिस! छानबीन और संदिग्धों की पकड़-धकड़ के नाम पर दिल्ली पुलिस हवा में लाठियां भांजने के सिवाए फिलहाल कुछ करती नजर नहीं आ रही है. भले ही उसके पास संदिग्धों से संबंधित तमाम महत्वपूर्ण तमाम सुराग क्यों न पहुंच चुके हों! दिल्ली पुलिस क्राइम-ब्रांच और फिंगर प्रिंट ब्यूरो से हाथ लगी जानकारी के मुताबिक वारदात में किसी जयचंद उर्फ लल्ला नाम के बदमाश का हाथ होना पाया गया है. इसकी पुष्टि फिंगर प्रिंट ब्यूरो द्वारा थाना सरिता विहार को मुहैया कराई गई गोपनीय रिपोर्ट से होता है. दिल्ली पुलिस फिंगर प्रिंट ब्यूरो के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक उनकी टीम ने मौके (अशोक चक्रधर के घर घटी वारदात की जगह से) से तमाम संदिग्ध फिंगर प्रिंट उठाए थे. इन्हीं में से एक फिंगर प्रिंट पूर्वी दिल्ली जिले के कुख्यात और एक्टिव बदमाश जयचंद उर्फ लल्ला (निवासी त्रिलोकपुरी) से मैच कर गया है. यह प्रिंट अशोक चक्रधर के घर हुई चोरी में उनकी अलमारी के ‘लॉकर’ के ऊपर से मिला था. ‘लल्ला’ के सामने लाचार हुई दिल्ली पुलिस! दिल्ली पुलिस फिंगर प्रिंट ब्यूरो के रिकॉर्ड में वांछित संदिग्ध (जयचंद लल्ला) के फिंगर प्रिंट पहले से मौजूद थे. जिसका यूनीक आईडी है 0816841TP00000226. यहां उल्लेखनीय है कि पुलिसिया भाषा-शैली में यूनीक आईडी को PIN NUMBER भी कहते हैं. दिल्ली पुलिस फिंगर प्रिंट ब्यूरो में जयचंद उर्फ लल्ला का काफी पुराना रिकॉर्ड मौजूद है. फिंगर प्रिंट ब्यूरो सूत्रों के मुताबिक, ‘थाना अमर कालोनी की डीडी नंबर 6A पर 17 अगस्त सन् 2018 को दर्ज शिकायत की पड़ताल के दौरान जयचंद लल्ला के फिंगर प्रिंट मैच हुए थे.’ कुख्यात ‘लल्ला’ पुलिस का ‘लाडला’ तो नहीं! पुलिसिया सूत्रों के मुताबिक, ‘8 जनवरी सन् 2019 को सरिता विहार में चोरी की एक और वारदात भी हुई थी. जिसकी सूचना डीडी नंबर 3A पर सरिता विहार थाने में दर्ज हुई. उस वारदात में भी घटनास्थल पर जयचंद उर्फ लल्ला के ही फिंगर-प्रिंट हाथ लगे थे.’ अमर कालोनी और सरिता विहार की चोरियों में सामने आए इस वांछित कुख्यात ‘लल्ला’ को पुलिस ने नहीं दबोचा! अगर लल्ला को वक्त रहते दबोच लिया गया होता तो शायद ठीक एक महीने ही बाद यानी 9 फरवरी 2019 को अशोक चक्रधर और बागेश्री का फ्लैट लुटने से बच जाता. तमाम तथ्य सवाल पैदा करते हैं कि कहीं कुख्यात बदमाश ‘लल्ला’ अप्रत्यक्ष रूप से ही सही दिल्ली पुलिस या फिर विशेषकर सरिता-विहार थाना पुलिस का ही ‘लाडला’ तो नहीं है? कुख्यात ‘लल्ला’ की कुंडली! इस लेखक के हाथ लगी बिगड़ैल और कुख्यात अपराधी ‘लल्ला’ की आपराधिक कुंडली के मुताबिक, ‘लल्ला को दिल्ली पुलिस ने सन् 2012 में गिरफ्तार किया था. उस समय वो पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मी नगर, शकरपुर, प्रीत विहार आदि इलाकों में सक्रिय था. 25 अगस्त सन् 2012 को शकरपुर थाने में दर्ज एफआईआर नंबर- 45/12 में चोरी के मामले में वो तिहाड़ जेल में बंद रहा. बाद में कड़कड़डूमा कोर्ट ने जेल में बंद रहने की अवधि को ही उसकी सजा मानकर रिहा कर दिया था. इससे पहले उसे 4 जनवरी सन् 2012 को पूर्वी दिल्ली के ही थाना मयूर विहार पुलिस ने सेंधमारी के आरोप में गिरफ्तार किया था. उसके खिलाफ एफआईआर नंबर 3 दर्ज करके.’ दिल्ली पुलिस के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक, ‘30 जुलाई सन् 2013 को जयचंद उर्फ लल्ला के खिलाफ दक्षिणी दिल्ली जिले के अंबेडकर नगर थाने में भी धारा 186/353/307/34 (हत्या की कोशिश) के तहत आपराधिक मामला दर्ज हुआ था. उसमें उसे अरेस्ट भी किया गया.’ पुलिसिया पड़ताल की उलझी हुई कहानी के अंत में भी लाख टके का एक अदद फिर वही सवाल मुंह बाए खड़ा है कि इतनी जानकारी के बावजूद कानून के लंबे हाथ लल्ला की गर्दन तक क्यों नहीं पहुंच पा रहे. (लेखक वरिष्ठ खोजी पत्रकार हैं....कहानी दिल्ली पुलिस मुख्यालय सूत्रों, पीड़ित परिवार, दिल्ली पुलिस फिंगर प्रिंट ब्यूरो से हासिल जानकारी के आधार पर लिखी गयी है.)
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