Budget 2019: CVoterIndia सर्वे में मिडिल क्लास ने मोदी सरकार के बजट को दिया 'Thumbs Up' - LiveNow24x7: Latest News, breaking news, 24/7 news,live news

 LiveNow24x7: Latest News, breaking news, 24/7 news,live news

खबरें जो सच बोले

Breaking

Saturday 2 February 2019

Budget 2019: CVoterIndia सर्वे में मिडिल क्लास ने मोदी सरकार के बजट को दिया 'Thumbs Up'

कहते हैं कि राजनीति में एक हफ्ता काफी लंबा समय होता है. चुनावी साल में ऐसा लगता है कि 24 घंटा भी बहुत लंबा समय है. अगर ऐसा नहीं है तो आप CVoterIndia की एक दिन पहले ‘केंद्रीय बजट 2019 से अपेक्षाएं’ विषय पर बजट-पूर्व सर्वेक्षण करने के बाद 1 फरवरी को बजट पेश होने के बाद एक्सक्लूसिव केंद्रीय बजट एग्जिट पोल में अभिव्यक्त हुई जनता की भावनाओं की किस तरह व्याख्या करेंगे? टीम CVoter 15 साल से भी ज्यादा समय से हर साल केंद्रीय बजट के ठीक पहले और ठीक बाद में यह कसरत करता रहा है. हमने इससे पहले जनता का इतने बड़े पैमाने पर मूड स्विंग नहीं देखा है, खासकर मिडिल क्लास में इतने कम समय के भीतर. सीवोटर का प्री-बजट सर्वे मोटे तौर पर, मोदी सरकार की ओर से किए गए आर्थिक प्रबंधन के कारण नागरिकों में उदासीनता का भाव है. खाद्य मुद्रास्फीति का सावधानी से प्रबंधन किए जाने के कारण केंद्र सरकार के खिलाफ सीधा गुस्सा नहीं है. हालांकि, गुस्से की गैरमौजूदगी से एनडीए-II के प्रति सकारात्मक समर्थन का धोखा नहीं खाना चाहिए. Cvoter के बजट-पूर्व ट्रैकर के दो प्रमुख पैरामीटर इसको सटीक तरीके से दर्शाते हैं. ये भी पढ़ें: Budget 2019: पॉपुलिस्ट है लेकिन मिडिल क्लास के लिए आखिरकार कारगर साबित हो सकता है ये बजट बजट-पूर्व सर्वेक्षण के अनुसार 48% उत्तरदाता महसूस करते हैं कि मुद्रास्फीति बेकाबू हो गई है, जबकि 37% महसूस करते हैं कि महंगाई में कमी आई है. 13% उत्तरदाताओं को लगता है कि कुछ भी नहीं बदला है. साफ तौर पर मुद्रास्फीति को लेकर देश की सोच बंटी हुई है, जिसमें नकारात्मक पक्ष की ओर झुकाव थोड़ा ज्यादा है. जबकि कच्चे तेल की कीमतों में वैश्विक महंगाई के बावजूद मुद्रास्फीति औसत दर्जे की है. 1 फरवरी के बजट एग्जिट पोल में, इस बजट से मुद्रास्फीति में कमी आने की उम्मीद करने वाले लोगों की संख्या पिछले साल के 9.7% के मुकाबले बढ़कर 15% रही. 2018 के बजट एग्जिट पोल की तुलना में निराशावाद 58% से घटकर 44% रहा है. इस साल के प्री-बजट पोल में, जब बीते एक साल में आम आदमी की क्वालिटी ऑफ लाइफ को ग्रेड देने के लिए कहा गया, तो 42% उत्तरदाताओं का दावा था कि इसमें सुधार हुआ है, जबकि 32% का दावा है कि यह खराब हुई है. ध्यान देने वाली बात है कि, 25% उत्तरदाताओं ने दृढ़ता से कहा कि कोई बदलाव नहीं हुआ है. यही वे तटस्थ मतदाता हैं जो 2019 में देश के राजनीतिक रुझान की दिशा तय करेंगे. लेकिन इस बजट एग्जिट पोल में, एक साल के भीतर समग्र क्वालिटी ऑफ लाइफ में सुधार की उम्मीद करने वाले लोगों की संख्या पिछले साल के बजट के बाद 40% से भारी उछाल लेकर 62% पर पहुंच गई है. 2018 के बजट एग्जिट पोल की तुलना में लोगों की यह आशंका कि उनकी क्वालिटी ऑफ लाइफ में गिरावट आएगी, 30% से घटकर 11% रह गई है. मिडिल क्लास की कुछ शर्तें थीं इन दो हेडलाइन संकेतकों से एक बुरी तरह विभाजित आम राय स्वतः स्पष्ट हो जाती है. एनडीए-II की आर्थिक नीतियों के समर्थक हैं और साथ ही विरोधी भी हैं. इसके अलावा, 2018 के बजट एग्जिट पोल के आंकड़ों के अनुसार, करीब 35% भारतीयों ने महसूस किया कि मोदी सरकार ने उम्मीद से ज्यादा बुरा किया जबकि 31% ने महसूस किया कि यह उनकी उम्मीदों से अच्छा है. एक दिन पहले तक वही ट्रेंडलाइन चलती रही, लगभग इसी आंकड़े के साथ. लेकिन 1 फरवरी को यह अचानक बदल गया है, और कैसे? आज की तारीख में 42% लोगों को लग रहा है कि मोदी सरकार ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया है, जबकि यह कहने वालों की गिनती कि इसने बदतर किया है, सिर्फ 24% रह गई है. ये भी पढ़ें: Budget 2019: पिछले चार सालों में किसानों के लिहाज से अब तक का सबसे हल्का बजट इन हालात में, एक दिन पहले मिडिल क्लास के 79% उत्तरदाताओं ने कहा था कि वे एनडीए-II को समर्थन देने के बारे में सोच सकते हैं बशर्ते सरकार बजट 2019 में रियायतें देती है. इन रियायतों में 5 लाख रुपए तक की आय पर आयकर से छूट देना, यूनिवर्सल बेसिक इनकम, चिकित्सा भत्ता पर कर-छूट और घर की खरीद में जीएसटी से छूट समेत कई अन्य कई मांगें शामिल थीं. जनता ने दिया ज्यादा स्कोर, सरकार ने लगाई बड़ी छलांग इस साल के केंद्रीय बजट की टोटल रेटिंग को देखते हुए, ऐसा लगता है कि बजट के राजनीतिक पक्ष पर ज्यादा ध्यान दिया गया है. जब केंद्रीय बजट को 0 से 10 के पैमाने पर रखने के लिए कहा गया, तो मोदी सरकार ने बीते 4 सालों में 6.6, 6.3, 5.2 और 4.7 स्कोर हासिल किया था. 2018 में मोदी सरकार का 4.7 का स्कोर वास्तव में 2013/2014 के यूपीए सरकार के आखिरी बजट के 4.8 स्कोर से कम था. कहने की जरूरत नहीं है कि यह हर तरह से गिरावट की ओर अग्रसर था जिससे लगभग सभी गलत जगहों पर खतरे की घंटी बजी होगी. आज जनता ने इसे 10 में से 7.0 स्कोर दिया है, जो हर लिहाज से एक बड़ी छलांग है. पिछले साल, कम से कम 64.4% उत्तरदाताओं ने कहा था कि बजट उनके मासिक खर्च को बढ़ाएगा और केवल 15.9% ने कहा कि यह उन्हें और बचत का मौका मिलेगा. आज यह संख्या दोगुनी होकर 33% से अधिक उत्तरदाताओं तक पहुंच गई, जिन्होंने कहा कि वे कर-मुक्त आय से ज्यादा बचत कर सकेंगे. पिछले साल के बजट एग्जिट पोल में 64% की तुलना में मुद्रास्फीति की आशंका घटकर आज 39% रह गई है. ये भी पढ़ें: चुनावी साल में मोदी सरकार का मास्टरस्ट्रोक! अंतरिम बजट के दौरान लोकसभा में दिखा बीजेपी का फील गुड हमारे बजट सर्वेक्षण में हमने 4 सदस्यों वाले औसत परिवार के लिए वांछित आय के स्तर के बारे में पूछा था. संबंधित राज्य के सामाजिक-आर्थिक मापदंडों के अनुसार प्रतिक्रियाएं भिन्न होती हैं. जाहिर तौर पर अमीर राज्यों ने ऊंची आय अपेक्षा दर्ज कीं जबकि गरीब राज्यों ने कम आय अपेक्षा के साथ जवाब दिया. पिछले 15 सालों में, भारतीयों की ओर से बताई गई वार्षिक आय राशि केंद्र सरकार की ओर से तय करयोग्य आय से काफी अधिक थी. 15 साल के ट्रैकर में 80% से अधिक उत्तरदाताओं ने हमेशा कहा कि इस अधिक आय को कर-मुक्त बनाया जाए. 15 सालों में ऐसा पहली बार है कि बजट ट्रैकर इसके उलट रुझान दिखा रहा है. इस साल के बजट-पूर्व सर्वे में 4 सदस्यों के एक मिडिल क्लास परिवार के लिए वार्षिक वांछित आय 4 लाख के करीब बताई गई थी. अब कर-छूट वाली आय दोगुना करके 5 लाख सालाना कर दी गई है, आश्चर्य नहीं कि बजट बाद के एग्जिट पोल में लगभग 70% उत्तरदाताओं ने संतुष्टि जताई है. गौर करने वाली बात यह है कि, पिछले साल मोदी सरकार के बजट के साथ संतुष्टि के आंकड़े निराशाजनक 44% थे, जो मनमोहन सिंह सरकार के पिछले बजट को मिले 46% से भी कम थे. इसलिए यह कहना सही होगा कि राजनीतिक बजट निश्चित रूप से अपने मकसद में कामयाब रहा है. यह देखना बाकी है कि क्या यह जोरदार जयकारे मोदी के लिए वास्तविक वोटों में भी परिवर्तित होंगे.

No comments:

Post a Comment

Sports

Pages