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Saturday 2 February 2019

नाउम्मीदगी में बजट से उम्मीद लगाए शामली के किसानों के हाथ निराशा से ज्यादा कुछ नहीं लगा

यूपी के कांधला गांव के रहने वाले विशाल शामली के एकमात्र कॉलेज से कृषि विज्ञान की पढ़ाई करना चाहते थे. लेकिन बीते छह महीने से वह बिस्तर से नहीं उठे हैं. उनकी रीढ़ के निचले हिस्से में गहरी चोट लगी है. ऐसे में विशाल की मां के लिए घर का खर्च उटाना मुश्किल हो रहा है. यहां तक कि वह विशाल का सही उपचार भी नहीं करवा पा रही हैं. विशाल किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उनके परिवार के पास कुछ एकड़ जमीन है. इस पर गन्ना की खेती हुआ करती थी. लेकिन पिछले एक साल से चीनी मिल ने उनका बकाया भी नहीं चुकाया है. फिलहाल यह परिवार अपने दो भैंसों का दूध बेचकर ही घर का खर्च पूरा कर रहा है. न्यूज़ 18 के अनुसार इन सारी दिक्कतों के बीच इस परिवार की पूरी उम्मीद इस साल के बजट पर थी, क्योंकि कहा जा रहा था कि सरकार किसानों के लिए कुछ बड़ी घोषणा करने वाली है. लेकिन परिवार को निराशा ही हाथ लगी. वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने अंतरिम बजट में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) योजना के तहत छोटे किसानों को सालाना छह हजार रुपए की मदद दिए जाने का ऐलान किया है. यह रकम दो-दो हजार रुपए की तीन किश्तों में सीधे किसानों के बैंक खाते में डाले जाएंगे. सुनने में तो ये रकम ठीक-ठाक लगती है, लेकिन इसे अगर थोड़ा विस्तार से समझें तो पता चलता है कि यह राशि प्रतिदिन के हिसाब से प्रति व्यक्ति केवल 17 रुपए बैठती है. ऐसे में ये किसान सरकार की इस योजना को बस चुनावी नौटंकी करार दे रहे हैं. किसानों की शिकायत है कि आखिर इतनी छोटी रकम में वह अपना कर्ज कैसे चुकाएंगे. छह हजार रुपए में तो खाद और कीटनाशक का भी खर्च नहीं निकलता  बता दें कि गन्ना बेल्ट के नाम से मशहूर इस इलाके के किसान चीनी मिलों के पास पड़े अपने बकाये रकम को लेकर परेशान थे ही, वहीं हाल के दिनों आवारा पशुओं द्वारा फसल के नुकसान से उनकी मुसीबत और बढ़ गई है. इधर लिलन गांव के राहुल चौधरी की कहानी भी कोई जुदा नहीं है. बजट वाले दिन उनकी नजर टीवी से एक मिनट के लिए भी नहीं हटी. चौधरी के मुताबिक, उन्हें मोदी सरकार के इस आखिरी बजट से काफी उम्मीदें थी. उन्हें उम्मीद थी कि इस बजट में 'किसानों की भलाई' के लिए कई कदम उठाए जाएंगे, लेकिन उन्हें इसमें ऐसा कोई खास ऐलान नहीं दिख रहा. चौधरी कहते हैं, 'भला इस छह हजार रुपए में क्या होता है? खाद और कीटनाशकों का खर्च ही हजारों रुपए बैठता है. ऐसे में इतनी रकम से किसानों का आखिर क्या भला होगा? अगर सरकार गन्ना किसानों का बकाया दबाकर रखने वाले चीनी मिल मालिकों पर नकेल कसती तो किसानों को ज्यादा खुशी होती.' राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के गठन की घोषणा ने दी है थोड़ी राहत वहीं कांधला गांव के ही एक अन्य किसान विकास कहते हैं, 'न खाद्य-बीज पर सब्सिडी दी गई. यह महीने के 500 रुपए से क्या होता है? क्या हम भिखारी है? हमें कोई भीख नहीं चाहिए. चीनी मिल वाले हमारा बकाया कब से दबाए बैठे हैं. ऐसे में इस 500 रुपए से भला क्या होगा.' वहीं कुछ ग्रामीण इस बजट को पूरी तरह से खारिज नहीं कर रहे. सरकार द्वारा गायों की देखभाल के लिए राष्ट्रीय कामधेनु आयोग गठित करने की घोषणा से वह खुश हैं.सरकार ने इसके तहत राष्ट्रीय गोकुल मिशन के लिए 750 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं. शामली के किसान इसे एक अहम ऐलान मानते हैं. पिछले कई महीनों से वे आवारा मवेशियों की समस्या से जूझ रहे हैं. उनकी शिकायत रही है कि ये मवेशी उनकी खड़ी बर्बाद कर दिया करते हैं. इन किसानों का कहना है कि सरकार के इस कदम से इन मवेशियों की समस्या पर थोड़ी लगाम जरूर लगाई जा सकेगी.

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