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Sunday 24 February 2019

क्यों अपने नाम के साथ संजय भंसाली ने जोड़ा मां का नाम?

संजय लीला भंसाली फिल्म इंडस्ट्री की एक ऐसी शख्सियत हैं जिनका अपना एक इतिहास है. वो इतिहास जिसमें कई सच्ची और कड़वी कहानियां हैं. उन कहानियों को आप भंसाली की फिल्म में भी देख सकते हैं. बशर्ते आपको संजय लीला भंसाली का बीता कल पता हो. इस बात में कोई दोराय नहीं कि संजय लीला भंसाली ‘जीनियस’ हैं. वो निर्माता निर्देशक हैं, स्क्रीनप्ले राइटर हैं और संगीत निर्देशक भी. पिछले करीब तीन दशक के उनके करियर की हर एक फिल्म अपने आप में कमाल है. बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर परिंदा जैसी फिल्म से वो जुड़े रहे हैं. जो फिल्म हिंदी सिनेमा के ‘ट्रेंड’ को बदलने वाली फिल्मों में से एक है. बतौर डायरेक्टर उन्होंने खामोशी और ब्लैक जैसी सीरियस फिल्म बनाई है तो हम दिल दे चुके सनम, देवदास, गोलियों की रासलीला- राम लीला, बाजीराव मस्तानी और पद्मावत जैसी ‘कॉर्मिशयली’ हिट फिल्में भी बनाई हैं. उनकी फिल्मों में एक भव्यता है मैरीकॉम और राउडी राठौर  जैसी फिल्मों के निर्माता के तौर पर उन्होंने अपनी सिनेमाई समझ का भी परिचय दिया है. आज उन्हीं संजय लीला भंसाली का जन्मदिन है. बचपन के संघर्षों का नतीजा है आज की सफलता संजय आज जिस मुकाम पर हैं वहां से उनके बचपन के संघर्षों का अंदाजा लगाना ही मुश्किल है. पिता डीओ भंसाली भी फिल्म इंडस्ट्री में थे. समय खराब हुआ तो उन्हें शराब की लत लग गई. लत भी ऐसी वैसी नहीं बल्कि हर वक्त वाली. बच्चों को संभालने, पढ़ाने लिखाने की सारी जिम्मेदारी मां पर थी. मां खुद एक अच्छी गायक और डांसर थीं. एकाध फिल्म में उन्होंने छोटा-मोटा कुछ काम भी किया था. लेकिन पति के शराब में डूबने के बाद उनके पास अपने बच्चों की देखभाल और आर्थिक संकटों से जूझने के अलावा कोई रास्ता नहीं था. साड़ी में फॉल लगाने से कुछ पैसे बचते थे. कभी तो ज्यादा साड़ियां मिलती थीं कभी बहुत कम. ऐसा नहीं था कि संजय के पिता को इन बातों की जानकारी नहीं थी लेकिन वो इन बातों को नजरअंदाज करते थे. अलबत्ता कई बार नाराज होने पर घर में तोड़ फोड़ करते थे. संजय का बचपन इन्हीं बातों को देखकर गुजरा. हां, लेकिन मां ने कभी बच्चों से अपनी परेशानियों और संघर्षों का रोना नहीं रोया. लोग कहते रहे कि बच्चों को सरकारी स्कूल में डाल दो लेकिन उन्होंने बच्चों को अंग्रेजी मीडियम स्कूल में अच्छी शिक्षा दिलाई. बच्चों को खुश रखने के लिए गाती गुनगुनाती रहीं लेकिन बच्चों से कुछ छिपा नहीं था. वो हर रोज अपने पिता को नशे में डूबा हुआ देख रहे थे. यही वजह है कि पिता से लगाव का जो रिश्ता होना चाहिए वो कभी पैदा ही नहीं हुआ या पैदा हुआ भी तो आगे नहीं बढ़ा. बतौर डायरेक्टर संजय की पहली फिल्म खामोशी में नाना पाटेकर गुस्से में घर में जो तोड़ फोड़ करते हैं उसमें आप संजय के पिता की छाप देख सकते हैं. सफलता की पहली सीढ़ी पर ही अपनाया मां का नाम ये संजय की मां के प्रयास ही थे कि उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की. पढ़ाई पूरी करने के बाद वो पुणे में एफटीआईआई गए. वहां से निकले तो फिल्मों की अपनी दुनिया में कदम रखा. उन्हीं दिनों विधु विनोद चोपड़ा मुख्यधारा के बड़े एक्टर्स को लेकर अपनी फिल्म परिंदा बना रहे थे. जिसमें जैकी श्रॉफ, अनिल कपूर और माधुरी दीक्षित जैसे कलाकार थे. संजय भंसाली ने इस फिल्म में विधु विनोद चोपड़ा को असिस्ट किया. फिल्म सुपरहिट हुई. सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता, सर्वश्रेष्ठ सहअभिनेता समेत कुल पांच फिल्मफेयर अवॉर्ड इस फिल्म की झोली में आए. ये उस दिन की बात है जब फिल्म के क्रेडिट तय किए जा रहे थे. क्रेडिट रोल यानि फिल्म में काम करने वाले लोगों के नाम. जब बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर संजय के नाम की बारी आई तो उन्होंने कहा कि वो अपना नाम संजय लीला भंसाली लिखना चाहते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि लीला उनकी मां का नाम है. कामयाबी की इस पहली सीढ़ी पर पैर रखते वक्त उन्हें सबसे पहले अगर किसी को शुक्रिया अदा करना था तो वो उनकी मां थीं. संजय आज भी अपनी मां का नाम आशीर्वाद की तरह साथ लिखते हैं. परिंदा की सफलता के बाद भी संजय लीला भंसाली और विधु विनोद चोपड़ा की जोड़ी लंबी नहीं चली. दोनों ने अलग अलग रास्ते पकड़े. इसके बाद संजय ने बतौर निर्देशक पहली फिल्म बनाई-खामोशी. ये फिल्म नहीं चली लेकिन फिल्म को तारीफ मिली. संजय को कामयाबी का स्वाद अगली फिल्म में मिला. जब उन्होंने सलमान, अजय देवगन और ऐश्वर्या राय के साथ ‘हम दिल दे चुके सनम’ बनाई. फिल्म को अपार सफलता मिली. फिल्म का संगीत भी बहुत पसंद किया गया. संजय के देवदास ने बटोरी थी तारीफें तीन साल के भीतर ही संजय लीला भंसाली देवदास लेकर आए. देवदास में एक बार फिर ऐश्वर्या राय थीं. ऐश्वर्या के अलावा उस दौर के सुपरस्टार शाहरुख खान और माधुरी दीक्षित स्टार कास्ट में थे. ये शरद चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास पर आधारित एक ऐसी फिल्म थी जिस पर दिग्गज फिल्मकार बिमल रॉय काम कर चुके थे. जाहिर है संजय के देवदास को तुलनाओं के दौर से भी गुजरना था. इस ‘रिस्क’ को उन्होंने बखूबी उठाया. फिल्म लाजवाब बनी. शाहरुख के किरदार में तमाम ‘शेड्स’ ऐसे थे जो संजय ने अपने पिता में देखे थे. यहां तक कि संजय के पिता की जब मौत हुई तो उन्होंने भी हथेलियां फैलाकर अपनी पत्नी का हाथ थामना चाहा था. जो देवदास फिल्म का भी आखिरी सीन है. इसके अलावा भी देवदास में एक बार फिर वही भव्यता दिखाई दी. उस समय तक बॉलीवुड की सबसे महंगी फिल्म को बनाने में करीब 50 करोड़ का खर्च आया. फिल्म ने 100 करोड़ से ज्यादा का बिजनेस भी किया. लाजवाब संगीत एक बार फिर उनकी फिल्म की कामयाबी की वजह बना. 5 नेशनल अवॉर्ड, 10 फिल्मफेयर अवॉर्ड फिल्म की झोली में आए. 10 फिल्मफेयर अवॉर्ड उस वक्त तक दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे का रिकॉर्ड था. संजय लीला भंसाली ने देवदास में रिकॉर्ड की बराबरी की और अगली फिल्म ब्लैक में 11 फिल्मफेयर अवॉर्ड लेकर उसे तोड़ भी दिया. ब्लैक के लिए संजय लीला भंसाली को राष्ट्रीय पुरस्कार ने भी नवाजा गया. इसके बाद भी संजय लीला भंसाली की हिट फिल्मों का दौर जारी है. भारत सरकार उन्हें पद्मश्री से नवाज चुकी है.

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