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Wednesday 16 January 2019

शीला दीक्षित बनीं दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष, बोलीं- AAP के साथ गठबंधन पर अभी नहीं हुआ फैसला

शीला दीक्षित ने दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी (DPCC) का अध्यक्ष पद संभाल लिया है. उन्होंने आप के साथ गठबंधन को लेकर कहा है कि इसपर अभी तक फैसला नहीं लिया है. शीला दीक्षित ने कहा- राजनीति चुनौतियों से भरी है, हम उसी के अनुसार रणनीति बनाएंगे. बीजेपी और आप (AAP) दोनों एक चुनौती हैं, हम मिलकर चुनौतियों का सामना करेंगे. आप के साथ गठबंधन पर अभी तक कुछ नहीं हुआ है. शीला दीक्षित की ताजपोशी के जरिए दिल्ली में सियासी बदलाव की झलक दिखाई दे सकती है. Sheila Dikshit ahead of taking charge as president of Delhi Congress: Politics is full of challenges, we will strategise accordingly. BJP and AAP both are a challenge; we will meet the challenges together. There is nothing on alliance with AAP yet. pic.twitter.com/yob6BaWaLD — ANI (@ANI) January 16, 2019 कार्यक्रम में वरिष्ठ पार्टी नेता अहमद पटेल की उपस्थिति दर्ज हो सकती है बैनर, पोस्टर और होर्डिंग्स के लिए स्लोगन तैयार किए जा चुके हैं. वह अपने तीनों कार्यकारी अध्यक्षों हारून यूसुफ, राजेश लिलोठिया और देवेंद्र यादव के साथ प्रदेश कार्यालय राजीव भवन पहुंचेंगी. प्राप्त जानकारी के अनुसार औपचारिक रूप से पदभार ग्रहण करने के बाद वह कार्यालय के पीछे लगे पंडाल में दिल्ली के तमाम नेताओं, संगठन पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को संबोधित करेंगी. इस कार्यक्रम में वरिष्ठ पार्टी नेता अहमद पटेल और मोतीलाल वोरा की उपस्थिति दर्ज हो सकती है. बता दें कि कुछ दिनों पहले ही कांग्रेस ने शीला दीक्षित को प्रदेश का कांग्रेस अध्यक्ष बना दिया था. उन्हें बधाई देते हुए अजय माकन ने ट्वीट किया था. उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा था, 'मुझे विश्वास है कि शीला जी की अगुवाई में हम मोदी+केजरीवाल सरकारों के विरोध में एक सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाएंगे.' 4 जनवरी को माकन ने  दिल्ली इकाई के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया  2015 विधानसभा चुनावों में पार्टी की हार के बाद करीब चार साल पहले अजय माकन को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था. हालांकि चार साल में अजय माकन को लेकर अंदरूनी मतभेद शुरू हो गया था. साथ ही माकन की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी शुरू हो गई थीं और फिर 4 जनवरी को अजय माकन ने पार्टी की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष पद से स्वास्थ्य संबंधी कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया था. उसके बाद कांग्रेस के नए अध्यक्ष की तलाश शुरू हो गई थी. हालांकि एक कारण ये भी बताया गया कि कांग्रेस और आप में गठबंधन की बात हो रही है और अजय माकन इसके विरोध में थे. अजय माकन गठबंधन के खिलाफ सबसे मुखर थे. वो नहीं चाहते थे कि आप के साथ कांग्रेस गठबंधन करे बल्कि कांग्रेस को अकेले चुनाव लड़ने की पैरवी कर रहे थे. अजय माकन पर खेमेबंदी का आरोप भी था अजय माकन दलील दे रहे थे कि कार्यकर्ता यही चाहता है लेकिन अभी कांग्रेस की प्राथमिकता अलग है. कांग्रेस केंद्र की सत्ता से बीजेपी को बेदखल करना चाहती है. अभी विधानसभा चुनाव में तकरीबन डेढ़ साल बाकी है, जिसकी रणनीति बाद में तय हो सकती है. हालांकि, पिछले चार साल में अजय माकन दिल्ली में कांग्रेस को मजबूत नहीं कर पाए थे. उनकी अगुवाई में दिल्ली में पार्टी नगर निगम में तीसरे नंबर पर पहुंच गई थी. विधानसभा के चुनाव में वोट बढ़े लेकिन सीट का खाता नहीं खुल पाया. यही नहीं अजय माकन पर खेमेबंदी का आरोप भी था. हालांकि पार्टी माकन को केंद्र में एडजस्ट करने का संकेत दे रही थी.कांग्रेस के ऊपर 2014 में बड़ा आंदोलन केजरीवाल की अगुवाई में हुआ था. अरविंद केजरीवाल ये साबित करने में से सफल रहे थे कि कांग्रेस करप्ट पार्टी है, जिसका राजनीतिक फायदा बीजेपी को मिला है. केजरीवाल की आवाज राहुल गांधी के आरोप का वजन बढ़ा सकती है केजरीवाल का सर्टिफिकेट कांग्रेस के दामन में लगे दाग को धो सकता है और बीजेपी के करप्शन के आरोप को हल्का कर सकता है. प्रधानमंत्री ने करप्शन पर कांग्रेस को घेरा है. अगस्ता से लेकर नेशनल हेराल्ड का मुद्दा बार-बार उठा रहे हैं. राफेल के मसले पर विरोधी दलों में एकजुटता की कमी साफ दिखाई दे रही है. इस मसले पर अरविंद केजरीवाल की आवाज राहुल गांधी के आरोप का वजन बढ़ा सकती है. वहीं कांग्रेस के साथ जाने में अरविंद केजरीवाल को फायदा है. केजरीवाल की स्वीकार्यता पूरे देश में बढ़ेगी. केजरीवाल ने इंडिया अगेंस्ट करप्शन के आंदोलन में लगभग सभी नेता को चोर साबित करने का प्रयास किया था. इस वजह से ज्यादातर राजनीतिक दल अरविंद केजरीवाल के विरोध में हैं. पहली बार चंद्रबाबू नायडू ने विरोधी दलों की बैठक में बुलाया था. दिल्ली में आप की सरकार की केंद्र से लड़ाई चल रही है. इस मुद्दे पर केजरीवाल को इन दलों का समर्थन मिल सकता है.

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