लोकसभा चुनाव से पूर्व केंद्र सरकार आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को खुश करने के लिए एक और घोषणा करने की सोच रही है. 10 प्रतिशत आरक्षण से अलग इस बार सरकार 8वीं से 12वीं कक्षा में पढ़े रहे छात्रों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा मुहैया कराने की ओर सोच रही है. सरकार मुफ्त शिक्षा के अधिकार को पूर्ण रूप से लागू करना चाहती है. इस संबंध में एचआरडी ने शिक्षा कार्यकर्ता अशोक अग्रवाल को पत्र लिखकर कहा है, 'मंत्रालय शिक्षा के अधिकार (RTE) एक्ट, 2009 के तहत बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा को 12वीं तक बढ़ाने के प्रस्ताव पर विचार कर रहा है. प्रस्ताव पर गहन अध्ययन के बाद इस संबंध में कोई फैसला लिया जा सकता है.' RTE के तहत छह से 14 साल तक यानी पहली से आठवीं तक के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का प्रावधान है. इस एक्ट के तहत प्राइवेट स्कूलों के लिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित रखना अनिवार्य है. गरीब वर्ग के वोटरों को रिझाने के दूसरे बड़े कदम के रूप में देखा जा रहा इसी महीने केंद्र सरकार ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सरकारी नौकरी में 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया है. ऐसे में 12वीं तक मुफ्त शिक्षा देने का केंद्र सरकार का फैसला गरीब वर्ग के वोटरों को रिझाने के दूसरे बड़े कदम के रूप में देखा जा रहा है. फिलहाल राइट टू एजुकेशन के दायरे को बढ़ाने का प्रस्ताव लंबे समय से ठंडे बस्ते में था और चुनाव से ऐन पहले इसका जिक्र फिर शुरू हो गया है. सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एजुकेशन (CABE) की एक सब-कमिटी ने 2012 में ही आरटीई एक्ट की सीमा को बढ़ाने का सुझाव दिया था. तब केंद्र में यूपीए सरकार थी. पिछले साल मार्च में राज्य शिक्षा मंत्री सत्यपाल सिंह ने संसद में बताया था कि आरटीई एक्ट के दायरे को बढ़ाने का कोई प्रस्ताव मंत्रालय के पास नहीं आया है. इसके बाद मई में दिल्ली हाईकोर्ट में इस संबंध में याचिका लगाई गई थी. नवंबर में दिल्ली हाईकोर्ट में वकील अशोक अग्रवाल ने ऑल इंडिया पेरेंट्स असोसिएशन की तरफ से मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखा था कि 8वीं पास होने के बाद स्कूल प्रबंधन छात्रों से कहता है कि या तो फीस दो या फिर स्कूल छोड़ दो. उन्होंने लिखा कि कक्षा आठवीं तक प्राइवेट इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ने के बाद छात्र के पास सरकारी स्कूल में पढ़ने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं बचता है. पत्र में उन्होंने आगे लिखा, 'ज्यादातर सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का माध्यम हिंदी या स्थानीय भाषा होती है. ऐसे में अंग्रेजी मीडियम से पढ़कर निकले छात्रों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इसके साथ ही बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में मुफ्त शिक्षा देने का उद्देश्य भी पूरा नहीं हो पाता है. ऐसे छात्रों को अपनी पढ़ाई पूरी करने का मौका दिया जाना चाहिए.' (न्यूज़ 18 के लिए ईरम आगा की रिपोर्ट)
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