पाकिस्तान में अब से डेढ़ महीने बाद आम चुनाव होने हैं इसके बाद वहां एक नई सरकार का गठन होगा. देश में चुनी हुई सरकारों के एक दशक पूरा होने पर वो सरकार के एक और टर्म (अवधि) की उम्मीद कर रहा है.
यह चुनाव न सिर्फ आतंकवाद, अर्थव्यवस्था और लोकतंत्र के भविष्य के लिए अहम होगा बल्कि इसका भारत समेत पाकिस्तान के पड़ोसियों पर भी असर होगा.
पाकिस्तान में 25 जुलाई को नेशनल असेंबली के चुनाव होने हैं. वोटिंग के कुछ दिनों के अंदर ही नतीजे आने की संभावना है. 324 सदस्यों वाले नेशनल असेंबली में बहुमत का आंकड़ा 172 है. यदि किसी एक पार्टी को जरूरी बहुमत लायक नंबर नहीं मिलते हैं तो छोटी पार्टियों के समर्थन से देश में नई सरकार का गठन संभव है. लेकिन तब यह संभावना बढ़ जाती है कि वो छोटी पार्टियां कट्टरपंथी विचारधारा की समर्थक होंगी. ऐसी स्थित में भारत के प्रति उनका नजरिया काफी उग्र होगा.
2013 में हुए देश के आम चुनाव में नवाज शरीफ की पार्टी, पाकिस्तान मुस्लिम लीग-एन (पीएमएल-एन) बहुमत के आंकड़े से मात्र 6 सीटें कम रह गई थी. मगर वो चुने गए 19 निर्दलियों का समर्थन हासिल कर बिना किसी दिक्कत नई सरकार बनाने में कामयाब रही थी.
भारत में एक साल बाद लोकसभा के चुनाव होने हैं, ऐसे में उसकी नजर भी अपने पड़ोसी मुल्क में होने वाले चुनावों पर होगी. इसके पीछे उद्दश्य पाकिस्तान के नए सरकार का भारत के प्रति रवैया, कश्मीर समेत अन्य विवादित मुद्दों पर उसके रूख को समझना होगा.
नवाज शरीफ और उनके छोटे भाई शाहबाज शरीफ
चुनाव मैदान में कौन-कौन उतरेंगे?
देश की जनता के मूड की बात करें तो पीएमएल-एन ने हाल ही में सरकार का अपना टर्म पूरा किया है. उसके सत्ता में वापसी करने के पूरे आसार हैं. गैलप द्वारा किए हाल में किए गए सर्वे के नतीजों में पीएमएल-एन 38 प्रतिशत रेटिंग के साथ अपने प्रतिद्वंद्वियों से 13 फीसदी के अंतर से आगे है.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल जुलाई में पार्टी के संस्थापक नवाज शरीफ को पनामा पेपर लीक मामले में दोषी करार देकर किसी भी सरकारी पद और राजनीतिक पार्टी में पद पर बने रहने पर रोक लगा दिया था. मगर फिर भी वो पार्टी के सबसे बड़े चेहरा बने हुए हैं और चुनाव प्रचार अभियान में शामिल हो रहे हैं.
नवाज शरीफ के अयोग्य ठहराए जाने के बाद उनके छोटे भाई शाहबाज शरीफ को केयरटेकर (कार्यवाहक) प्रधानमंत्री बनाया गया था.
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