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Tuesday, 26 June 2018

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खूंटी में पुलिस से भिड़े पत्थलगड़ी समर्थक, सांसद कड़िया मुंडा के तीन गार्ड किए अगवा

खूंटी, जेएनएन। झारखंड के खूंटी जिले के घाघरा में आज कई गांवों के पत्‍थलगड़ी समर्थक पत्‍थलगड़ी को पहुंचे। पत्‍थलगड़ी की, मगर सभा का आयोजन नहीं कर सके। सभा करने आए लोगों को सुरक्षा बलों के जवान ने घेर कर खदेड़ा। पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा। लाठीचार्ज में अनेक पत्‍थलगड़ी समर्थक घायल हो गए।
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जानकारी के मुताबकि, पत्थलगड़ी शुरू होने के तीन महीने बाद पहली बार पुलिस ने लाठीचार्ज किया है।लाठीचार्ज के बाद से अफरातफरी का माहौल है। इस बीच, पत्थलगड़ी समर्थकों ने खूंटी के सांसद कड़िया मुंडा के तीन गार्ड सुबोध कुजूर, बिनोद केरकेट्टा और सियों सोरेन के हथियार लूट लिए और उनको अगवा कर अपने साथ लेते गए। लगभग 300 पत्थलगड़ी समर्थक आए थे। चार हथियार लूट लिए। इस दौरान बड़ी संख्या में महिलाएं भी पहुंची थी। 


तीन माह बाद कोचांग-कुरूंगा पहुंची पुलिस

सूबे के मुखिया रघुवर दास एक तरफ आम जनता की सुरक्षा को लेकर पुलिस को अत्याधुनिक करने मेंं कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं, वहीं पुलिस ने अपने को सुरक्षित और नौकरी बचाने के चक्कर में गांव की जनता की सुरक्षा को भगवान भरोसे छोड़ दिया है। हालांकि, पुलिस इस बात से इंकार कर रही है। गांव की जनता में पुलिस से अधिक अवैध वर्दीधारियों पर विश्वास होने लगा है। यहीं कारण है कि ग्रामीण अपनी समस्या को लेकर पुलिस के पास नहीं अपराधियों की शरण में जा रहे हैं। दरअसल, जिले के कई ऐसे गांव हैं, जो अति उग्रवाद प्रभावित माने जाते हैं। जैसे अड़की, रनिया, मुरहू, कर्रा और खूंटी प्रखंड क्षेत्र का कुछ एरिया। इनमें से सबसे अधिक अड़की वर्तमान में आगे चल रहा है। इस क्षेत्र में जबसे पत्थलगड़ी शुरू हुई है, उग्रवाद पनप गया है।

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गांव-गांव में पत्थलगड़ी कर बाहरी लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इससे पुलिस उस क्षेत्र में नहीं जाती है। करीब तीन महीने पहले एक बार पुलिस ने घुसने का प्रयास किया था, उसे बंधक तीन घंटे बंधक बनना पड़ा था। माफीनामा लिखने के बाद ग्रामीणों ने पुलिस-प्रशासन को छोड़ा था। इसके बाद सोमवार को पुलिस तीन माह बाद कोचांग-कुरूंगा क्षेत्र में पहुंची। ऐसा तब हुआ, जब दुष्कर्म के बाद आम लोग व मीडिया का दबाव पड़ा। इसके अलावा साके में पुलिस को बेइज्जत होना पड़ा था। इससे इस क्षेत्र के अपराधियों का मनोबल बढ़ता गया। उनको लगता है कि इस एरिया में कुछ भी करें पुलिस यहां तक नहीं पहुंच सकती है। पुलिस उन क्षेत्रों में न तो गोली चला सकती है और न ही किसी पर लाठी बरसा सकती है। पुलिस के हाथों को ऊपर से बांध दिया गया है। इससे पुलिस उस पत्थलगड़ी क्षेत्र में जाने से परहेज करती है। सूत्रों की माने तो इसमें पुलिस अधिकारी का कोई दोष नहीं है।


कई ऐसे जाबांज पुलिस अधिकारी हैं जो उस क्षेत्र में जाना चाहते हैं, लेकिन ऊपर से उनके हाथ बांध दिए जाते हैं। इससे उनका मनोबल कम हो जाता है। ताजा उदाहरण कोचांग में हुई सामूहिक दुष्कर्म का मामला है। यदि उस क्षेत्र में पुलिस का कोई कैंप होता, तो शायद ऐसी घटना नहीं होती। इसके अलावा उस क्षेत्र में कई ऐसी घटनाएं घट चुकी हैं, जो पुलिस के संज्ञान में आया ही नहीं है। इस घटना में शिकार पीड़िता सीधे रांची पुलिस मुख्यालय में शिकायत करने पहुंच गई, तो मामला हाईलाइट हो गया और कार्रवाई शुरू हुई। लेकिन कई ऐसे मामले उस क्षेत्र में दफन हो गए हैं, जो पुलिस के पास नहीं पहुंच पाए हैं। उस क्षेत्र में हर दिन किसी ने किसी से किसी बेटी-बहू को दरिंदों का शिकार होना पड़ रहा है, अपराधियों के खौफ से पुलिस तक मामला नहीं पहुंच पाते हैं।

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जानिए, क्या है पत्थलगड़ी

पत्थलगड़ी उन पत्थर स्मारकों को कहा जाता है जिसकी शुरुआत समाज ने हजारों साल पहले की थी। यह एक पाषाणकालीन परंपरा है, जो आदिवासियों में आज भी प्रचलित है। माना जाता है कि मृतकों की याद संजोने, खगोल विज्ञान को समझने, कबीलों के अधिकार क्षेत्रों के सीमांकन को दर्शाने, बसाहटों की सूचना देने, सामूहिक मान्यताओं को सार्वजनिक करने आदि उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रागैतिहासिक मानव समाज ने पत्थर स्मारकों की रचना की।


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पत्थलगड़ी की इस आदिवासी परंपरा को पुरातात्त्विक वैज्ञानिक शब्दावली में ‘महापाषाण’, ‘शिलावर्त’ और मेगालिथ कहा जाता है। दुनिया भर के विभिन्न आदिवासी समाजों में पत्थलगड़ी की यह परंपरा मौजूदा समय में भी बरकरार है। झारखंड के मुंडा आदिवासी समुदाय इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं, जिनमें कई अवसरों पर पत्थलगड़ी करने की प्रागैतिहासिक और पाषाणकालीन परंपरा आज भी प्रचलित है। 

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